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Sunday 8 January 2012

अमरनाथ यात्रा- शिव धाम | Amarnath Yatra -2011 | Amarnath Dham Katha in Hindi । Amarnath Darshan

Amarnath Darshan
सृष्टि का आधार ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी शिव शंकर हैं. ये तीन त्रिदेव ही सृष्टि के आदि, मध्य एवं अंत हैं. ये अजन्मा एवं निरंकार हैं. यह न तो जन्म लेते हैं और न ही इनकी मृत्यु होती है. सृष्टि के आरम्भ काल में यही अपनी बीज शक्ति से सृष्टि को जन्म देते हैं एवं अंत में उसे अपने में समाहित कर लेते हैं. भक्तों की पूजा एवं अर्चना को साकार रूप देने के लिए यह साकार रूप धारण करते हैं. इन्होने अपनी शक्ति को नारी रूप प्रदान किया है जिसे उमा, लक्ष्मी एवं सरस्वती के नाम पूजा जाता है. उमा शिव की पत्नी हैं. लक्ष्मी विष्णु की और ब्रह्मा की संगिनी देवी सरस्वती हैं. मनुष्य को पाप से दूर रहकर धर्म का मार्ग चुनने की प्रेरणा देने हेतु यह समय-समय पर लीला करते रहते हैं.
भगवान विष्णु तो अपनी लीलाओं के कारण लीलाधारी कहे जाते हैं. इन्हीं के समान शिव की लीलाएं भी अद्भुत हैं. इनकी लीला आज भी अमरनाथ धाम में अमर है जो अमरनाथ की पवित्र गुफा में इनके होने का एहसास कराती है. श्रद्धालु भक्तों के लिए यह अत्यंत पूजनीय स्थल हैं जहां जीवन में कम से कम एक बार जाने की इच्छा सभी की रहती है. लेकिन, यहां पहुंचता वही है जिसे बाबा अमरनाथ अपने दरबार में बुलाते हैं.

अमरनाथ धाम की कथा | Amarnath Dham Katha in Hindi

माता पार्वती शिव के समान ही आदि शक्ति हैं. सृष्टि के आरम्भ से लेकर अंत तक की सभी कथाएं इन्हें ज्ञात है. एक समय की बात है देवी पार्वती के मन में अमर होने की कथा जानने की जिज्ञासा हुई. पार्वती ने भगवान शंकर से अमर होने की कथा सुनाने के लिए कहा. भगवान शंकर पार्वती की बात सुनकर चौंक उठे और इस बात को टालने की कोशिश करने लगे. देवी पार्वती जब हठ करने लगीं तब शिव जी ने उन्हें समझाया कि यह गुप्त रहस्य है जिसे त्रिदेवों के अतिरिक्त कोई नहीं जानता.
यह ऐसी गुप्त कथा है जिसे कभी किसी ने अन्य किसी से नहीं कहा है. इस कथा को जो भी सुन लेगा वह अमर हो जाएगा. देवतागण भी इस कथा को नहीं जानते हैं अत: पुण्य क्षीण होने के बाद उन्हें अपना पद रिक्त कर देना पड़ता है और उन्हें पुन: जन्म लेकर पुण्य संचित करना पड़ता है. ऐसे में तुमसे इस कथा को कहने में मै असमर्थ हूं. जब पार्वती शिव के समझाने के बावजूद नहीं मानी तब शिव जी ने पार्वती से अमर होने की कथा सुनाने का आश्वासन दिया.
कथा सुनाने के लिए शिव ऐसे स्थान को ढूंढने लगे जहां कोई जीव-जन्तु न हो. इसके लिए उन्हें श्रीनगर स्थित अमरनाथ की गुफा उपयुक्त लगी. पार्वती जी को कथा सुनाने के लिए इस गुफा में लाते समय शिव जी चंदनबाड़ी नामक स्थान पर माथे से चंदन उतारा.  पिस्सू टॉप नामक स्थान पर पिस्सूओं को. अनन्त नाग में नागों को एवं शेषनाग नामक स्थान पर शेषनाग को ठहरने के लिए कहा. इसके बाद शिव और पार्वती अमारनाथ की गुफा में प्रवेश कर गये.
इस गुफा में शिव माता पार्वती को अमर होने की कथा सुनाने लगे. कथा सुनते-सुनते देवी पार्वती को नींद आ गई और वह सो गईं जिसका शिव जी को पता नहीं चला. शिव अमर होने की कथा सुनाते रहे. इस समय दो सफेद कबूतर शिव की कथा सुन रहे थे और बीच-बीच में गूं-गूं की आवाज निकाल रहे थे. शिव को लग रहा था कि पार्वती कथा सुन रही हैं और बीच-बीच में हुंकार भर रहीं हैं. इस तरह दोनों कबूतरों ने अमर होने की पूरी कथा सुन ली.
कथा समाप्त होने पर शिव का ध्यान पार्वती की ओर गया जो सो रही थीं. शिव जी ने सोचा कि पार्वती सो रही हैं तब इसे सुन कौन रहा था. शिव की दृष्टि तब कबूतरों के ऊपर गया. शिव कबूतरों पर क्रोधित हुए और उन्हें मारने के लिए तत्पर हुए. इस पर कबूतरों ने शिव जी कहा कि हे प्रभु हमने आपसे अमर होने की कथा सुनी है यदि आप हमें मार देंगे तो अमर होने की यह कथा झूठी हो जाएगी. इस पर शिव जी ने कबूतरों को जीवित छोड़ दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप निवास करोगो. माना जाता है कि आज भी इन दोनों कबूतरों का दर्शन भक्तों को यहां प्राप्त होता है.

अद्भुत है अमरनाथ शिवलिंग | Amazing Amarnath Shivling

अमरनाथ शिवलिंग हिम से निर्मित होता. यह शिवलिंग अन्य शिवलिंगों की भांति सालों भर नहीं रहता है. वर्ष के कुछ महीनों में यहां हिम से स्वयं शिवलिंग का निर्माण होता है. स्वयं हिम से निर्मित शिवलिंग होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है. आषाढ़ पूर्णिमा से शिवलिंग का निर्माण होने लगता है जो श्रावण पूर्णिमा के दिन पूर्ण आकार में आ जाता है.
अमरनाथ की गुफा में हिम जल टपकता रहता है. आस-पास जमा हुआ बर्फ भी कच्चा होता है जबकि हिम से बना शिवलिंग ठोस होता है. इस स्थान पर आकर ईश्वर के प्रति आस्था मजबूत हो जाती है. इस तरह शिवलिंग का निर्माण सदियों से होता चला आ रहा है. यह भगवान के भक्तों को यह विश्ववास दिलाता है कि उनकी श्रद्धा सच्ची है. ईश्वर है तभी यह संसार है.

अमरनाथ यात्रा | Amarnath Yatra

अमरनाथ धाम श्रीनगर से लगभग 135 किलोमीटर दूर है. यह स्थान समुद्र तल से 13, 600 फुट की ऊँचाई पर है. इस स्थान पर ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. प्रतिवर्ष अमरनाथ यात्रा के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. यात्रा से पूर्व श्रद्धालु भक्तों को पंजीकरण करवाना होता है. पंजीकरण के लिए भक्तों से कुछ शुल्क जमा करना पड़ता है. सरकार एवं कुछ निजी संस्थाओं द्वारा यात्रियों को यात्रा सुविधाएं दी जाती हैं.
यहां जाने के लिए दो रास्ते हैं एक पहलगांव होकर तथा दूसरा बालटाल से. इन स्थानों तक भक्तगण बस से आते हैं इसके बाद का सफर पैदल तय करना होता है. पहलगांव से होकर जाने वाला रास्ता बालटाल से सुगम है अत: सुरक्षा की दृष्टि से तीर्थ यात्री इसी रास्ते से अमरनाथ जाना अधिक पसंद करते हैं.

अमरनाथ धाम हिन्दु मुस्लिम एकता का प्रतीक | Amarnath Dham : Hindu Muslim Unity Symbol

भगवान अपने भक्तों में किसी प्रकार का अंतर नहीं करता है. इसका प्रमाण है अमरनाथ धाम. हिन्दु जिस अमरनाथ धाम की यात्रा को अपना सौभाग्य मानते हैं उस अमरनाथ धाम के विषय में बताने वाला एक मुस्लिम गड़रिया था. जिसे पशु चराते बाबा हिमानी अमरनाथ का पता उसी प्रकार लगा जिस तरह बैजू को बाबा बैद्यनाथ का पता चला. आज भी मंदिर में चढ़ने वाले चढ़ावे का एक चौथाई भाग इस मुस्लिम गड़रिये परिवार को मिलता है. बाबा इस तरह से जात-पात के भेद को दूर कर मानवता का ज्ञान दे रहे हैं. भक्तों को बाबा का संदेश समझकर जात-पात का भेद मिटाने का प्रयास करना चाहिए.

अमरनाथ धाम का महात्म्य एवं यात्रा का फल | Amarnath Dham Mahatmya and Yatra Benefits

कहते हैं जिस पर भोले बाबा की कृपा होती है वही अमरनाथ धाम पहुंचता है. यहां पहुंचना ही सबसे बड़ा पुण्य है. जो भक्त बाबा हिमानी का दर्शन करता है उसे इस संसार में सर्व सुख की प्राप्ति होती है. व्यक्ति के कई जन्मों के पाप कटित हो जाते हैं और शरीर त्याग करने के पश्चात उत्तम लोक में स्थान प्राप्त होता है.

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