Thursday, 29 November 2012
Saturday, 10 November 2012
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"Deepavali" redirects here. For the 2007 film, see Deepavali (film).
Deepavali | |
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Also called | Translation: Row of Lights; Diwali, Festival of Lights, Deepawali |
Observed by | Hindus, Jains, Buddhists, Sikhs |
Type | Religious, India, Nepal, Sri Lanka, Myanmar, Mauritius, Guyana, Trinidad & Tobago, Surinam, Malaysia, Singapore, and Fiji (National holiday in these countries) |
Date | Decided by the luni-solar Hindu calendar |
2011 date | 26 October |
2012 date | 13 November |
2013 date | 3 November |
Celebrations | Decorating homes with lights and candles, Fireworks, distributing sweets and gifts |
Observances | Prayers, Religious rituals (see puja, prashad) |
Diwali is an official holiday in India,[1] Nepal, Sri Lanka, Myanmar, Mauritius, Guyana, Trinidad & Tobago, Suriname, Malaysia, Singapore and Fiji.
For Hindus, Diwali is one of the most important festivals of the year and is celebrated in families by performing traditional activities together in their homes. For Jains, Diwali marks the attainment of moksha or nirvana by Mahavira in 527 BCE.[2][3]
The name "Diwali" or "Divali" is a contraction of "Deepavali" (Sanskrit: दीपावली Dīpāvalī), which translates into "row of lamps".[4] Diwali involves the lighting of small clay lamps (dīpa in Sanskrit: दीप) filled with oil to signify the triumph of good over evil.[5] These lamps are kept on during the night and one's house is cleaned, both done in order to make the goddess Lakshmi feel welcome.[6] Firecrackers are burst in order to drive away evil spirits.[7][8][9] During Diwali, all the celebrants wear new clothes and share sweets and snacks with family members and friends.
Diwali commemorates the return of Lord Rama, along with Sita and Lakshmana, from his 14-year-long exile and vanquishing the demon-king Ravana. In joyous celebration of the return of their king, the people of Ayodhya, the Capital of Rama, illuminated the kingdom with earthen diyas and by bursting firecrackers.[10]
The festival starts with Dhanteras on which most Indian business communities begin their financial year. The second day of the festival, Naraka Chaturdasi, marks the vanquishing of the demon Naraka by Lord Krishna and his wife Satyabhama. Amavasya, the third day of Diwali, marks the worship of Lakshmi, the goddess of wealth in her most benevolent mood, fulfilling the wishes of her devotees. Amavasya also tells the story of Lord Vishnu, who in his dwarf incarnation vanquished the Bali, and banished him to Patala. It is on the fourth day of Diwali, Kartika Shudda Padyami, that Bali went to patala and took the reins of his new kingdom in there. The fifth day is referred to as Yama Dvitiya (also called Bhai Dooj), and on this day sisters invite their brothers to their homes.
Thursday, 1 November 2012
क्यों देखते हैं करवाचौथ पर छलनी से चांद
करवाचौथ व्रत का
नियम है कि विवाहित स्त्रियों को सोलह ऋंगार करके गौरी, गणेश और भगवान शिव सहित
करवा माता की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में करवा माता की कथा सुनना भी आवश्यक है।
व्रत के नियम के अनुसार व्रती को पूरे दिन निर्जल व्रत रखना होता है। शाम में चांद
को देखने के बाद पति के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत खोला जाता है।
किसी कारणवश पति के पास नहीं होने पर पति की तस्वीर को देखकर और उनका ध्यान करके भी व्रत खोला जाता है। लेकिन इस पूरे व्रत में छलनी का विशेष महत्व है। अमीर हो या गरीब हर वर्ग की महिलाएं इस व्रत में छलनी जरूर खरीदती हैं। शाम ढलने पर इसी छलनी की ओट से चांद देखकर व्रत पूरा होता है।
करवाचौथ व्रत में छलनी का महत्व इसलिए है क्योंकि छलनी के कारण ही एक पतिव्रता स्त्री का व्रत टूटा था। करवाचौथ की कथा के अनुसार भावुकता में आकर भाईयों ने अपनी बहन को छल से चांद की जगह छलनी की ओट से दिया दिखाकर भोजन करवा दिया। झूठा चांद देखकर भोजन करने के कारण पतिव्रता स्त्री को अपना पति खोना पड़ा। इसके बाद पूरे वर्ष उस स्त्री ने चतुर्थी तिथि का व्रत रखा। पुनः करवाचौथ को छलनी से वास्तविक चांद देखने के बाद पतिव्रता स्त्री को पति प्राप्त हुआ।
छलनी का एक अर्थ छल करने वाला होता है। इसलिए महिलाएं स्वयं अपने हाथ में छलनी लेकर चांद देखती है ताकि कोई अन्य उसे झूठा चांद दिखाकर व्रत भंग न करे। करवा चौथ में छलनी लेकर चांद को देखना यह भी सीखाता है कि पतिव्रत का पालन करते हुए किसी प्रकार का छल उसे प्रतिव्रत से डिगा न सके।
करवा चौथ की जितनी भी कथाएं हैं उन सभी कथाओं में भाई द्वारा छलनी से झूठे चांद को दिखाने का वर्णन मिलता है। उस घटना को याद करने के लिए भी महिलाएं करवाचौथ का व्रत छलनी से चांद देखकर ही खोलती हैं।
किसी कारणवश पति के पास नहीं होने पर पति की तस्वीर को देखकर और उनका ध्यान करके भी व्रत खोला जाता है। लेकिन इस पूरे व्रत में छलनी का विशेष महत्व है। अमीर हो या गरीब हर वर्ग की महिलाएं इस व्रत में छलनी जरूर खरीदती हैं। शाम ढलने पर इसी छलनी की ओट से चांद देखकर व्रत पूरा होता है।
करवाचौथ व्रत में छलनी का महत्व इसलिए है क्योंकि छलनी के कारण ही एक पतिव्रता स्त्री का व्रत टूटा था। करवाचौथ की कथा के अनुसार भावुकता में आकर भाईयों ने अपनी बहन को छल से चांद की जगह छलनी की ओट से दिया दिखाकर भोजन करवा दिया। झूठा चांद देखकर भोजन करने के कारण पतिव्रता स्त्री को अपना पति खोना पड़ा। इसके बाद पूरे वर्ष उस स्त्री ने चतुर्थी तिथि का व्रत रखा। पुनः करवाचौथ को छलनी से वास्तविक चांद देखने के बाद पतिव्रता स्त्री को पति प्राप्त हुआ।
छलनी का एक अर्थ छल करने वाला होता है। इसलिए महिलाएं स्वयं अपने हाथ में छलनी लेकर चांद देखती है ताकि कोई अन्य उसे झूठा चांद दिखाकर व्रत भंग न करे। करवा चौथ में छलनी लेकर चांद को देखना यह भी सीखाता है कि पतिव्रत का पालन करते हुए किसी प्रकार का छल उसे प्रतिव्रत से डिगा न सके।
करवा चौथ की जितनी भी कथाएं हैं उन सभी कथाओं में भाई द्वारा छलनी से झूठे चांद को दिखाने का वर्णन मिलता है। उस घटना को याद करने के लिए भी महिलाएं करवाचौथ का व्रत छलनी से चांद देखकर ही खोलती हैं।
Navratan Singh Mathura
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