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Tuesday, 23 August 2016

यूहत्रा रचित सुसमाचार
भूमिका
यूहÂा रचित सुसमाचार में यीशु को परमेश्वर के अनन्त वचन के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसने ‘‘देहधरी होकर हमारे बीच में डेरा किया।’’ इस पुस्तक में यह स्पष्ट कथन है, कि यह सुसमाचार इसलिये लिया गया कि इसके पाठक विश्वास करंे कि यीशु ही प्रतिज्ञात उ(ारकर्ता अर्थात् परमेश्वर का पुत्रा है, और वे यीशु में विश्वास के द्वारा जीवन प्राप्त कर सकें ;20ः31द्ध।
    भूमिका में यीशु को परमेश्वर के अनन्त वचन के रूप में दर्शाया गया है। उसके पश्चात् सुसमाचार के पहले भाग में सात आश्चर्यकर्मों या चिन्हों का वर्णन है, उनसे यह प्रगट होता है कि यीशु प्रतिज्ञात उ(ारकर्ता अर्थात् परमेश्वर का पुत्रा है। दूसरा भाग उपदेश है। उनमें यह समझाया गया है कि इन आश्चर्यकर्मों का अर्थ क्या है। इस भाग में यह भी बताया गया है कि कैसे कुछ लोगों ने यीशु में विश्वास किया और उसके अनुयायी बन गए, जबकि अन्य लोगों ने उसका विरोध् किया और विश्वास करने से इन्कार कर दिया। 13-17 अध्याय में यीशु के पकड़वाए जाने वाली रात को, यीशु की उसके चेलों के साथ घनिष्ठ सहभागिता, और क्रूस पर चढ़ाए जाने से पूर्व की संध्या को चेलों को तैयार करने और उन्हें उत्साहित करने वाले यीशु के वचनों का विस्तारपूर्वक वर्णन है। अन्त के अध्यायों में यीशु के पकड़वाए जाने और मुकदमे, उसके क्रूस पर चढ़ाए जाने, गाड़े जाने, पुनरूत्थान, और पुनरूत्थान के बाद चेलों पर प्रगट होने का वर्णन है।
    यूहत्रा मसीह के द्वारा अनन्त जीवन के दान पर बल देता है। यह एक ऐसा दान है जो अभी आरम्भ होता है और उनको प्राप्त होता है जो यीशु को मार्ग, सत्य, और जीवन के रूप में ग्रहण करते हैं। आत्मिक बातों को दर्शाने के लिये दैनिक जीवन की साधरण वस्तुओं का प्रतीकों के रूप में प्रयोग यूहत्रा की एक प्रमुख विशेषता है, जैसे-जल, रोटी, ज्योति, चरवाहा और उसकी भेड़ें, तथा दाखलता और उसके फल।

यही है जगत का मसीहा
आप सब को मेरा प्यार भरा प्रभु यीशु मसीह में सलाम-नमस्कार-ये जो पुस्तक है यही है जगत का मसीहा इसमें परमेश्वर के पुत्रा यीशु मसीह के बारे में बताया गया है यीशु परमेश्वर का पुत्रा होने के साथ ही साथ इस जगत का मसीहा भी है परमेश्वर ने इसलिए उसे जगत में भेजा कि वो जगत के लिए अपना प्राण दे और उन्हें पापों से मुक्त करे उनका उद्वार करे ताकि लोग बुराई को छोड़ के एक अच्छा जीवन जीये क्योंकि परमेश्वर नही चाहता कि कोई पाप में फंस कर मरे क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में अपनी समानता में बनाया है। परमेश्वर को दुःख होता है जब मनुष्य पाप में जीवन व्यतित करता है -इसीलिए उसने अपने एक लौते पुत्रा यीशु मसीह को दे दिया ताकि वो लोगों के पापो के लिए बलि हो जाए और जो कोई उसके लहू पर विश्वास करे कि वो हमारे लिए बहाया गया है और हमारे लिए मारा गया गाडा गया और तीसरे दिन मुरदो में से जी उठा वो अपने पापों और दुखो से मुक्ति पाए क्योंकि पापों के लिए कीमत चुकानी पड़ती है और वो कीमत प्रभु यीशु मसीह ने सारी मनुष्य जाति के लिए चूका दी है अब केवल विश्वास करना है और अपने पापो से उद्वार पाना है-मसीह का मतलब होता है- अभिषिक्त किया हुआ पापो से छुटकारा देने वाला नया जीवन देने वाला शैतान और दुष्टआत्माओ से बचाने वाला परमेश्वर कि बातो को सीखाने वाला अनुग्रह करने वाला माफी देना वाला दया करने वाला सबके बोझ अपने ऊपर लेने वाला -मृत्यु पर जय पाने वाला स्वर्ग का रास्ता बनाने वाला अपने प्राण देके दुसरो के प्राणों को बचाने वाला और भी बहुत सी बाते है जो मसीह के बारे में है। अगर वो सारी इस पुस्तक में लिख दी जाए तो मैं समझता हूँ कि ये पुस्तक संसार में भी नही समाएगी ये बाते केवल इसलिये लिखी गई है कि हम विश्वास करे कि यही परमेश्वर का पुत्रा यीशु मसीह ही जगत का मसीहा है। ;ठतवजीमत त्ंरमेी ज्ञनउंतद्ध  
 
वचन देहधरी हुआ
;यूहÂा 1ः1-18द्ध

1.    आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। 2. यही आदि में परमेश्वर के साथ था। 3. सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ है उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नहीं हुई। 4. उसमें जीवन था और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था। 5. ज्योति अन्ध्कार में चमकती है, और अन्ध्कार ने उसे ग्रहण न किया।
    6    एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से आ उपस्थित हुआ जिसका नाम यूहÂा था। 7. वह गवाही देने आया कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएँ। 8. वह आप तो वह ज्योति न था, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिये आया था।
    9    सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी। 10. वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहिचाना। 11. वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। 12. परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अध्किार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। 13. वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।
    14    और वचन देहधरी हुआ, और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता  के एकलौते की महिमा। 15 यूहÂा ने उसके विषय में गवाही दी, और पुकारकर कहा, ‘‘यह वही है, जिसका मैंने वर्णन किया कि जो मेरे बाद आ रहा है, वह मुझ से बढ़कर है क्योंकि वह मुझ से पहले था।’’ 16 क्योंकि उसकी परिपूर्णता में से हम  सब ने प्राप्त किया अर्थात अनुग्रह पर अनुग्रह। 17 इसलिये कि व्यवस्था तो मूसा के द्वारा दी गई, परन्तु अनुग्रह और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुँची। 18 परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्रा जो पिता की गोद में है, उसी ने उसे प्रगठ किया।






यीशु के जन्म की घोषणा
;लूका 1ः26-38द्ध
26    छठवें महीने में परमेश्वर की ओर से जिब्राईल स्वर्गदूत, गलील के नासरत नगर में, 27 एक कुँवारी के पास भेजा गया जिसकी मंगनी यूसुफ नामक दाऊद के घराने के एक पुरूष से हुई थीः उस कुँवारी का नाम मरियम था। 28 स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा, ‘‘आनन्द और जय तेरी हो, जिस पर ईश्वर का अनुग्रह हुआ है ! प्रभु तेरे साथ है!’’ 29 वह उस वचन से बहुत घबरा गई, और सोचने लगी कि यह किस प्रकार का अभिवादन है? 30 स्वर्गदूत ने उससे कहा, ‘‘ हे मरियम, भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। 31 देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्रा उत्पन्न होगा, तू उसका नाम यीशु रखना। 32 वह महान् होगा और परमप्रधन का पुत्रा कहलाएगा, और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उसको देगा, 33 और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा, और उसके राज्य का अन्त न होगा।’’ 34 मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, मैं तो कुँवारी हूँ और पुरूष को जानती ही नही। 35 स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया, ‘‘पवित्रा आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधन की सामथ्र्य तुझ पर छाया करेगी, इसलिये वह पवित्रा जो उत्पत्रा होने वाला है, परमेश्वर का पुत्रा कहलाएगा। 36 और देख, तेरी कुटुम्बिनी  इलीशिबा के भी बुढ़ापे में पुत्रा होने वाला है, यह उसका, जो बाँझ कहलाती थी छठवाँ महीना है। 37 क्योंकि जो वचन परमेश्वर की ओर से होता है वह प्रभावरहित नहीं होता।’’ 38 मरियम ने कहा, ‘‘ देख, मैं प्रभु की दासी हूँ, मुझे तेरे वचन के अनुसार हो।’’ तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
मरियम का स्तुति -गान
;लूका 1ः46-50द्ध
46 तब मरियम ने कहा,
    ‘‘मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है
47 और मेरी आत्मा मेरे उ(ार करने वाले
    परमेश्वर से आन्दित हुई,
48 क्योंकि उसने अपनी दासी की दीनता पर दृष्टि की है,
    इसलिये देखो, अब से सब युग-युग के लोग मुझे ध्न्य कहेंगे,
49 क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े-
    बड़े काम किए हैं। उसका नाम पवित्रा है,
50 और उसकी दया उन पर, जो उससे डरते हैं,
        पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।
यीशु का जन्म
;मत्ती 1ः18-25द्ध
18 यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उसकी माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उनके इक्ट्ठा होने से पहले ही वह पवित्रा आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। 19 अतः उसके पति यूसुफ ने जो ध्र्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने का विचार किया। 20 जब वह इन बातों के सोच ही में था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा, ‘‘हे यूसुफ! दाऊद की संतान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ ले आने से मत डर, क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्रा आत्मा की ओर से है। 21 वह पुत्रा जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उ(ार करेगा।’’    22 यह सब इसलिए हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था, वह पूरा होः 23 ‘‘ देखो, एक कुँवारी गर्भवती होगी और एक पुत्रा जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा,’’ जिसका अर्थ है- परमेश्वर हमारे साथ । 24 तब यूसुफ नींद से जागकर प्रभु के दूत की आज्ञा के अनुसार अपनी पत्नी को अपने यहाँ ले आया 25 और जब तक वह पुत्रा न जनी तब तक वह उसके पास न गया और उसने उसका नाम यीशु रखा।
                स्वर्गदूतों द्वारा चरवाहों को संदेश
                    ;लूका 2ः8-20द्ध
8 और उस देश में कितने गड़ेरिये थे, जो रात को मैदान में रहकर अपने झुण्ड का पहरा देते थे। 9 और प्रभु का एक दूत उनके पास आ खड़ा हुआ, और प्रभु का तेज उनके चारों ओर चमका, और वे बहुत डर गए। 10 तब स्वर्गदूत ने उनसे कहा, ‘‘ मत डरो, क्योंकि देखो, मैं तुम्हें बड़े आन्नद का सुसमाचार सुनाता हूँ जो सब लोगों के लिये होगा, 11 कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिये एक उ(ारकर्ता जन्मा है, और यही मसीह प्रभु है। 12 और इसका तुम्हारे लिये यह पता है कि तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे।’’ 13 तब एकाएक उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्गदूतों का दल परमेश्वर की स्तुति करते हुए और यह कहते दिखाई दिया,
    14 ‘‘ आकाश में परमेश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है, शान्ति हो।’’
    15 जब स्वर्गदूत उनके पास से स्वर्ग को चले गए, तो गड़ेरियों ने आपस में कहा, ‘‘ आओ, हम बैतलहम जाकर यह बात जो हुई है, और जिसे प्रभु ने हमें बताया है, देखें।’’ 16 और उन्होंने तुरन्त जाकर मरियम और यूसुफ को, और चरनी में उस बालक को पड़ा देखा। 17 इन्हें देखकर उन्होंने वह बात जो इस बालक के विषय में उनसे कही गई थी, प्रगट की, 18 और सब सुनने वालों ने उन बातों से जो गड़ेरियों ने उनसे कहीं आश्चर्य किया। 19 परन्तु मरियम ये सब बातें अपने मन में रखकर सोचती रही। 20 और गड़ेरिये जैसा उनसे कहा गया था, वैसा ही सब सुनकर और देखकर परमेश्वर की महिमा और स्तुति करते हुए लौट गए।  

यूहÂा बपतिस्मा देनेवाले की गवाही
;यूहÂा 1ः 19-28द्ध
    19    यूहÂा की गवाही यह है, कि जब यहूदियों ने यरूशलेम से याजकों और लेवियों को उससे यह पूछने के लिये भेजा, ‘‘ तू कौन है?’’ 20 तो उसने यह मान लिया और इन्कार नहीं किया, परन्तु मान लिया, ‘‘मैं मसीह नहीं हूँ।’’ 21 तब उन्होंने उससे पूछा, ‘‘ तो फिर कौन है? क्या तू एलिÕयाह है?’’ उसने कहा, ‘‘ मैं नहीं हूँ।’’ ‘‘ फिर तू है कौन? ताकि हम अपने भेजने वालों को उत्तर दें। तू अपने विषय में क्या कहता है?’’ 23 उसने कहा, ‘‘ जैसे यशाायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा है: ‘मैं जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हूँ कि तुम प्रभु का मार्ग सीध करो’। ’’
    24    वे फरीसियों की ओर से भेजे गए थे। 25 उन्होंने उससे यह प्रश्न पूछा, ‘‘ यदि तू न मसीह है, और न एलिÕयाह, और न वह भविष्यद्वक्ता है, तो फिर बपतिस्मा क्यों देता है?’’ 26 यूहÂा ने उनको उत्तर दिया, ‘‘मैं तो जल से बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु तुम्हारे बीच में एक व्यक्ति खड़ा है जिसे तुम नहीं जानते। 27 अर्थात् मेरे बाद आनेवाला है, जिसकी जूती का बन्ध् मैं खोलने के योग्य नहीं।’’ 28 ये बातें यरदन के पार बैतनिÕयाह में हुई, जहाँ यूहÂा बपतिस्मा देता था।
    यूहÂा द्वारा यीशु का बपतिस्मा
    ;मत्ती 3ः 13-17द्ध
13 उस समय यीशु गलील से यरदन के किनारे यूहÂा के पास उससे बपतिस्मा लेने आया। 14 परन्तु यूहÂा यह कह कर उसे रोकने लगा, ‘‘ मुझे तो तेरे हाथ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है, और तू मेरे पास आया है?’’ 15 यीशु ने उसको यह उत्तर दिया, ‘‘अब तो ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमें इसी रीति से सब धर्मिकता को पूरा करना उचित है।’’ तब उसने उसकी बात मान ली। 16 और यीशु बपतिस्मा लेकर तुरन्त पानी में से ऊपर आया, और देखो, उसके लिए आकाश खुल गया, और उसने परमेश्वर के आत्मा को कबूतर के समान उतरते और अपने ऊपर आते देखा। 17 और देखो, यह आकाशवाणी हुई: ‘‘ यह मेरा प्रिय पुत्रा है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।’’

परमेश्वर का मेम्ना
;यूहÂा 1ः 29-34द्ध

    29    दूसरे दिन उसने यीशु को अपनी ओर आते देखकर कहा, ‘‘ देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है जो जगत का पाप उठा ले जाता है। 30 यह वही है जिसके विषय में मैंने कहा था, एक पुरूष मेरे पीछे आता है जो मुझ से श्रेष्ठ है, क्योंकि वह मुझ से पहले था।’’ 31 मैं तो उसे पहिचानता न था, परन्तु इसलिये मैं जल से बपतिस्मा देता हुआ आया कि वह इस्त्राएल पर प्रगट हो जाए।’’ 32 और यूहÂा ने यह गवाही दीः ‘‘ मैंने आत्मा को कबूतर के समान आकाश से उतरते देखा है, और वह उस पर ठहर गया। 33 मैं तो उसे पहिचानता नहीं था, परन्तु जिस ने मुझे जल से बपतिस्मा देने को भेजा, उसी ने मुझ से कहा, ‘जिस पर तू आत्मा को उतरते और ठहरते देखे, वही पवित्रा आत्मा से बपतिस्मा देनेवाला है।’ 34 और मैंने देखा, और गवाही दी है कि यही परमेश्वर का पुत्रा है।’’

यीशु की परीक्षा
;मत्ती 4ः 1-11, 16-17द्ध

4    तब आत्मा यीशु को जंगल में ले गया ताकि इब्लीस से उस की परीक्षा हो। 2 वह चालीस दिन, और चालीस रात, निराहार रहा, तब उसे भूख लगी। 3 तब परखनेवाले ने पास आकर उस से कहा, ‘‘ यदि तू परमेश्वर का पुत्रा है, तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियाँ बन जाएँ।’’ 4 यीशु ने उत्तर दियाः ‘‘ लिखा है, ‘मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा।’’
    5 तब इब्लीस उसे पवित्रा नगर में ले गया और मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया, 6 और उससे कहा, ‘‘ यदि तू परमेश्वर का पुत्रा है, तो अपने आप को नीचे गिरा दे, क्योंकि लिखा हैः ‘वह तेरे विषय में अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा देगा, और वे तुझे हाथों-हाथ उठा लेगें, कहीं ऐसा न हो कि तेरे पाँवों में पत्थर से ठेस लगे।’’
    7 यीशु ने उससे कहा, ‘‘यह भी लिखा हैः तू प्रभु अपने परमेश्वर की परीक्षा न कर।’’ 8 फिर इब्लीस उसे एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर ले गया और सारे जगत के राज्य और उसका वैभव दिखाकर 9 उससे कहा, ‘‘ यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूँगा।’’ 10 तब यीशु ने उससे कहा, ‘‘ हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा हैः ‘ तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।’’ 11 तब शैतान उसके पास से चला गया, और देखो, स्वर्गदूत आकर उसकी सेवा करने लगे। 16 जो लोग अंध्कार में बैठे थे, उन्होंने बड़ी ज्योति देखी, और जो मृत्यु के देश और छाया में बैठे थे, उन पर ज्योति चमकी।’’ 17 उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, ‘‘ मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।’’
यीशु का रोगियों को चंगा करना
;मत्ती 4ः 23-24द्ध
23 यीशु सारे गलील में फिरता हुआ उन के आराध्नालयों में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता और लोगों की हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। 24 और सारे सीरिया देश में उसका यश फैल गया, और लोग सब बीमारों को, जो नाना प्रकार की बीमारियों  और दुःखों में जकड़े हुए थे, और जिन में दुष्टात्माएँ थी, और मिर्गीवालों और लकवे के रोगियों को, उसके पास लाए और उसने उन्हें चंगा किया।


ध्न्य वचन
;मत्ती 5: 1-12, 17द्ध
वह इस भीड़ को देखकर पहाड़ पर चढ़ गया, और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए। 2 और वह अपना मुँह खोलकर उन्हें यह उपदेश देने लगा। 3 ‘‘ध्न्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। 4 ‘‘ध्न्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि  वे शांति पाएँगे। 5 ‘‘ध्न्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अध्किारी होंगे। 6 ‘‘ध्न्य हैं वे, जो धर्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किए जाएँगे। 7 ‘‘ध्न्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी। 8 ‘‘ध्न्य हैं वे, जिन के मन शु( हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे। 9 ‘‘ ध्न्य हैं वे, जो मेल कराने वाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्रा कहलाएँगे। 10 ‘‘ध्न्य हैं वे, जो धर्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का का है। 11 ‘‘ध्न्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएँ और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध् में सब प्रकार की बुरी बात कहें। 12 तब आनन्दित और मगन होना, क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है। इसलिये कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था। 17 ‘‘यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकें को लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूँ।
व्यभिचार
;मत्ती 5ः27-29द्ध
27 ‘‘ तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘व्यभिचार न करना।’ 28 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्राी पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका। 29 यदि तेरी दाहिनी आँख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर फेंक दे, क्योेंकि तेरे लिये यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नष्ट हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।
तलाक
;मत्ती 5ः 31-32द्ध
31 ‘‘ यह भी कहा गया था, ‘जो कोई अपनी पत्नी को तलाक देना चाहे तो उसे त्यागपत्रा दे।’ 32 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ कि जो कोई अपनी पत्नी को व्यभिचार के सिवा किसी और कारण से तलाक दे, तो वह उससे व्यभिचार करवाता है, और जो कोई उस त्यागी हुई से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है।



शत्राुओं से प्रेम
;मत्ती 5ः43-48द्ध
43 ‘‘तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।’ 44 परन्तु मैं तुमसे यह कहता हूँ कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना करो, 45 जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भले और बुरे दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और ध्र्मी और अध्र्मी दोनों पर मेंह बरसाता है। 46 क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या फल होगा, क्या महसूल लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते? 47 ‘‘यदि तुम केवल अपने भाईयों ही को नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते? 48 इसलिये चाहिये कि तुम सि( बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सि( है। 
दान
;मत्ती 6ः 1-4द्ध
‘‘सावधन रहो! तुम मनुष्यों को देखाने के लिये अपने ध्र्म के काम न करो, नही ंतो अपने स्वर्गीय पिता से कुछ भी फल न पाओगे। 2 ‘‘ इसलिये जब तू दान करे, तो अपने आगे तुरही न बजवा, जैसे कपटी, सभाओं और गलियों में करते हैं, ताकि लोग उन की बड़ाई करें। मैं तुम से सच कहता हूँ            कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। 3 परन्तु जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायाँ हाथ न जानने पाए। 4 ताकि तेरा दान गुप्त रहें, और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।
प्रार्थना
;मत्ती 6ः 9-15द्ध
9 ‘‘ अतः तुम इस रीति से प्रार्थना किया करोः ‘हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्रा माना जाए। 10 ‘तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो। 11 ‘हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे। 12 और जिस प्रकार हम ने अपने अपराध्यिो को क्षमा किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधे को क्षमा कर। 13 ‘और हमें परीक्षा में न ला, परन्तु बुराई से बचा ;क्योंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरे ही है।’ आमीन।द्ध 14 ‘‘इसलिये यदि तुम मनुष्य के अपराध् क्षमा करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। 15 और यदि तुम मनुष्यों के अपराध् क्षमा न करोगे, तो तुम्हारा पिता भी तुम्हारे अपराध् क्षमा न करेगा।

उपवास
;मत्ती 6ः 16-18द्ध
16 ‘‘जब तुम उपवास करो, तो कपटियों के समान तुम्हारे मुँह पर उदासी न छाई रहे, क्योंकि वे अपना मुँह बनाए रहते हैं, ताकि लोग उन्हें उपवासी जानें। मैं तुम से सच कहता हूँ कि वे अपना प्रतिफल पा चुके। 17 परन्तु जब तू उपवास करे तो अपने सिर पर तेल मल और मुँह धे, 18 ताकि लोग नहीं परन्तु तेरा पिता जो गुप्त में है, तुझे उपवासी जाने। इस दशा में तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।
स्वर्गीय ध्न
;मत्ती 6ः 19-21द्ध
19 ‘‘ अपने लिये पृथ्वी पर ध्न इक्ट्ठा न करो, जहाँ कीड़ा और काई बिगाड़ते हैं, और जहाँ चोर सेंध् लगाते और चुराते हैं। 20 परन्तु अपने लिये स्वर्ग में ध्न इक्ट्ठा करो, जहाँ न तो कीड़ा और न काई बिगाड़ते हैं और जहाँ चोर न सेंध् लगाते और न चुराते हैं। 21 क्योंकि जहाँ तेरा ध्न है वहाँ तेरा मन भी लगा रहेगा।
शरीर की ज्योति
;मत्ती 6ः 22-23द्ध

22 ‘‘ शरीर का दीया आँख हैः इसलिये यदि तेरी आँख निर्मल हो, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला होगा। 23 परन्तु यदि तेरी आँख बुरी हो, तो तेरा सारा शरीर भी अन्ध्यिारा होगा, इस कारण वह उजियाला जो तुझ में है यदि अन्ध्कार हो तो वह अन्ध्कार कैसा बड़ा होगा।
परमेश्वर और ध्न
;मत्ती 6ः 24-26, 31-34द्ध

24 ‘‘ कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेंगा, या एक से मिला रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा। तुम परमेश्वर और ध्न दोनों की सेवा नही कर सकते। 25 इसलिये मैं तुम से कहता हूँ कि अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएँगे और क्या पीएँगे। और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहिनेंगे। क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्त्रा से बढ़कर नहीं? 26 आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं, फिर भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनको खिलाता है। क्या तुम उनसे अध्कि मूल्य नहीं रखते? 31 ‘‘ इसलिये तुम चिन्ता करके यह न कहना कि हम क्या खाएँगे, या क्या पीएँगे, या क्या पहिनेंगे। 32 क्योंकि अन्यजातीय इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, पर तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता है। 33 इसलिये पहले तुम परमेश्वर के राज्य और उसके ध्र्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी। 34 अतः कल की चिन्ता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिन्ता आप कर लेगा, आज के लिये आज ही का दुःख बहुत है।
दोष न लगाओ
;लूका 6ः37,41-42द्ध
37    ‘‘ दोष मत लगाओ, तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा। दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नहीं ठहराए जाओगे। क्षमा करो, तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। 41 तू अपने भाई की आँख के तिनके को क्यों देखता है, और अपनी ही आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता ? 42 जब तू  अपनी ही आँख का लट्ठा नहीं देखता, तो अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘हे भाई, ठहर जा तेरी आँख से तिनके को निकाल दूँ? है कपटी, पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब जो तिनका तेरे भाई की आँख में है, उसे भली भाँति देखकर निकाल सकेगा।
नम्रता और आतिथ्य-सत्कार
;लूका 14ः 7-14द्ध
7 जब उसने देखा कि आमन्त्रिात लोग कैसे मुख्य-मुख्य जगहें चुन लेते हैं तो एक दृष्टान्त देकर उनसे कहा, 8 ‘‘ जब कोई तुझे विवाह में बुलाए, तो मुख्य जगह में न बैठना, कहीं ऐसा न हो कि उसने तुझ से भी किसी बड़े को नेवता दिया हो, 9 और जिसने तुझे और उसे दोनों को नेवता दिया है, आकर तुझ से कहे, ‘इसको जगह दे,’ और तब तुझे लज्जित होकर सबसे नीची जगह में बैठना पड़े। 10 पर जब तू बुलाया जाए तो सब से नीची जगह जा बैठ कि जब वह, जिसने तुझे नेवता दिया है आए, तो तुझ से कहे, ‘हे मित्रा, आगे बढ़कर बैठ,’ तब तेरे साथ बैठने वालों के सामने तेरी बड़ाई होगी। 11 क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा, और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।’’ 12 तब उसने अपने नेवता देनेवाले से भी कहा, ‘‘ जब तू दिन का या रात का भोज करें, तो अपने मित्रों या भाइयों या कुटुम्बियों या ध्नवान पड़ोसियों को न बुला, कहीं ऐसा न हो कि वे भी तुझे नेवता दें, और तेरा बदला हो जाए। 13 परन्तु जब तू भोज करे तो कंगालों, टुण्डों, लंगड़ों और अन्धें को बुला। 14 तब तू ध्न्य होगा, क्योंकि उनके पास तुझे बदला देने को कुछ नहीं, परन्तु तुझे ध्र्मियों के जी उठने पर इस का प्रतिफल मिलेगा।’’
जैसा पेड़ वैसा फल
;लूका 6ः43-45द्ध
43 ‘‘ कोई अच्छा पेड़ नहीं जो निकम्मा फल लाए, और न तो कोई निकम्मा पेड़ है जो अच्छा फल लाए। 44 हर एक पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है, क्योंकि लोग झाड़ियों से अंजीर नहीं तोड़ते और न झड़बेरी से अंगूर। 45 भला मनुष्य अपने मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है, और बुरा मनुष्य अपने मन के बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है, क्योंकि जो मन में भरा है वही उसके मुँह पर आता है।
माँगो तो पाओगे
;मत्ती 7ः 7-8,11द्ध
7 ‘‘ माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा, ढूँढ़ो तो तुम पाओगे, खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा। 8 क्योंकि जो कोई माँगता है, उसे मिलता है, और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है, और जो खटखटाता है, उसके लिये खोला जाएगा। 11 अतः जब तुम बुरे होकर, अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएँ देना जानते हो, तो तुम्हारा स्वर्गीय पिता अपने माँगने वालों को अच्छी वस्तुएँ क्यों न देगा?
विध्वा के पुत्रा को जीवन -दान
;लूका 7ः11-17द्ध
11 थोड़े दिन बाद वह नाईन नाम के एक नगर को गया। उसके चेले और बड़ी भीड़ उसके साथ जा रही थी। 12 जब वह नगर के फाटक के पास पहुँचा, तो देखो, लोग एक मुरदे को बाहर लिए जा रहे थे, जो अपनी माँ का एकलौता पुत्रा था, और वह विध्वा थी, और नगर के बहुत से लोग उसके साथ थे। 13 उसे देख कर प्रभु को तरस आया, और उससे कहा, ‘‘मत रो।’’ 14 तब उसने पास आकर अर्थी को छुआ, और उठाने वाले ठहर गए। तब उसने कहा, ‘‘हे जवान, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ!’’ 15 तब वह मुरदा उठ बैठा, और बोलने लगा। उसने उसे उसकी माँ को सौंप दिया। 16 इससे सब पर भय छा गया, और वे परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे, ‘‘हमारे बीच में एक बड़ा भविष्यद्वक्ता उठा है, और परमेश्वर ने अपने लोगों पर कृपा दृष्टि की है।’’ 17 और उसके विष्य में यह बात सारे यहूदिया और आस पास के सारे देश में फैल गई।


बारह वर्ष की रोगी स्त्राी
;मरकुस 5ः 25-34द्ध
25    एक स्त्राी थी, जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था। 26 उसने बहुत वैद्यों से बड़ा दुःख उठाया, और अपना सब माल व्यय करने पर भी उसे कुछ लाभ न हुआ था, परन्तु और भी रोगी हो गई थी। 27 वह यीशु की चर्चा सुनकर भीड़ में उसके पीछे से आई और उसके वस्त्रा को छू लिया, 28 क्योंकि वह कहती थी, ‘‘ यदि मैं उसके वस्त्रा ही को छू लूँगी, तो चंगी हो जाऊँगी।’’29 और तुरन्त उसका लहू बहना बन्द हो गया, और उसने अपनी देह में जान लिया कि मैं उस बीमारी से अच्छी हो गई हूँ। 30 यीशु ने तुरन्त अपने में जान लिया कि मुझ में से सामथ्र्य निकली है, और भीड़ में पीछे फिरकर पूछा, ‘‘मेरा वस्त्रा किसने छुआ?’’ 31 उसके चेलों ने उससे कहा, ‘‘तू देखता है कि भीड़ तुझ पर गिरी पड़ती है, और तू कहता है कि किसने मुझे छुआ?’’32 तब उसने उसे देखने के लिये जिसने यह काम किया था, चारों ओर दृष्टि की। 33 तब वह स्त्राी यह जानकर कि मेरी कैसी भलाई हुई है, डरती और काँपती हुई आई, और उसके पाँवों पर गिरकर  उससे सब हाल सच-सच कह दिया। 34 उसने उससे कहा, ‘‘ पुत्राी, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है कुशल से जा, और अपनी इस बीमारी से बची रह।’’
अपनी मृत्यु के विषय यीशु की पुनः भविष्यद्वाणी
;मरकुस 9ः30-32द्ध
30 फिर वे वहाँ से चले, और गलील में होकर जा रहे थे। वह नहीं चाहता था कि कोई जाने, 30 क्योंकि वह अपने चेलों को उपदेश देता और उनसे कहता था, ‘‘ मनुष्य का पुत्रा, मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा, और वे उसे मार डालेंगे, और वह मरने के तीन दिन बाद जी उठेगा।’’ 32 पर यह बात उन की समझ में नहीं आई, और वे उससे पूछने से डरते थे।
आँध्ी को शान्त करना
;लूका 8ः22-25द्ध
22 फिर एक दिन वह और उसके चेले नाव पर चढ़े, और उसने उनसे कहा, ‘‘ आओ, झील के पार चलें।’’ अतः उन्होंने नाव खोल दी। 23 पर जब नाव चल रही थी, तो वह सो गया और झील पर आँध्ी आई, और नाव पानी से भरने लगी और वे जोखिम में थे। 24 तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, ‘‘ स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जाते हैं।’’ तब उसने उठकर आँध्ी को और पानी की लहरों को डाँटा और वे थम गए और चैन हो गया। 25 तब उसने उनसे कहा, ‘‘तुम्हारा विश्वास कहाँ था?’’ पर वे डर गए और अचम्भित होकर आपस में कहने लगे, ‘‘यह कौन है जो आँध्ी और पानी को भी आज्ञा देता है, और वे उसकी मानते हैं?’’



अध्किार
फिर उसने अपने बारह चेलों को पास बुलाकर, उन्हें अशु( आत्माओं पर अध्किार दिया कि उन्हें निकालें और सब प्रकार की बीमारियों और सब प्रकार की दुर्बलताओं को दूर करें। ;मत्ती 10ः1द्ध ‘‘ मैं तुम से सच कहता हूँ जो कुछ तुम पृथ्वी पर बाँधेगे, वह स्वर्ग में बंध्ेगा और जो कुछ तुम पृथ्वी पर खोलोगे, वह स्वर्ग में खुलेगा। 19 फिर मैं तुम से कहता हूँ, यदि तुम में से दो जन पृथ्वी पर किसी बात के लिए एक मन होकर उसे माँगें, तो वह मेरे पिता की ओर से जो स्वर्ग में है, उनके लिए हो जाएगी। 20 क्योंकि जहां दो या तीन मेरे नाम पर इक्ट्ठा होते हैं, वहां मैं उनके बीच में होता हूँ।’’;मत्ती 18ः18-20द्ध वे सत्तर आनन्द करते हुए लौटे और कहने लगे, ‘‘हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्मा भी हमारे वश में हैं।’’ 18 उसने उनसे कहा, ‘‘मैं शैतान को बिजली के समान स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था। 19 देखो, मैं ने तुम्हें साँपों और बिच्छुओं को रौंदने का, और शत्राु की सारी सामथ्र्य पर अध्किार दिया है, और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी। 20 तौभी इससे आनन्दित मत हो कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इस से आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।’’;लूका 10ः17-20द्ध
सब्त के दिन कुबड़ी स्त्राी को चंगा करना
;लूका 13ः10-17द्ध
10 सब्त के दिन वह एक आराध्नालय में उपदेश कर रहा था। 11 वहाँ एक स्त्राी थी जिसे अठारह वर्ष से एक दुर्बल करने वाली दुष्टात्मा लगी थी, और वह कुबड़ी हो गई थी और किसी रीति से सीध्ी नहीं हो सकती थी। 12 यीशु ने उसे देखकर बुलाया और कहा,‘‘ हे नारी, तू अपनी दुर्बला से छूट गई।’’ 13 तब उसने उस पर हाथ रखे, और वह तुरन्त सीध्ी हो गई और परमेश्वर की बड़ाई करने लगी। 14 इसलिये कि यीशु ने सब्त के दिन उसे अच्छा किया था, आराध्नालय का सरदार रिसियाकर लोगों से कहने लगा, ‘‘छः दिन हैं जिन में काम करना चाहिए, अतः उन ही दिनों में आकर चंगे हो, परन्तु सब्त के दिन में नहीं। ’’ 15 यह सुन कर प्रभु ने उत्तर दिया, ‘‘ हे कपटियों, क्या सब्त के दिन तुम में से हर एक अपने बैल या गदहे को थान से खोलकर पानी पिलाने नहीं ले जाता? 16 तो क्या उचित न था कि यह स्त्राी जो अब्राहम की बेटी है जिसे शैतान ने अठारह वर्ष से बाँध् रखा था, सब्त के दिन इस बन्ध्न से छुड़ाई जाती?’’ 17 जब उसने ये बातें कहीं, तो उसके सब विरोध्ी लज्जित हो गए, और सारी भीड़ उन महिमा के कामों से जो वह करता था, आनन्दित हुई।
यहूदियों का अविश्वास
;यूहÂा 10ः24-39द्ध
24 तब यहूदियों ने उसे आ घेरा और पूछा, ‘‘तू हमारे मन को कब तक दुविध में रखेगा? यदि तू मसीह है तो हम से साफ साफ कह दे।’’ 25 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, ‘‘ मैंने तुम से कह दिया पर तुम विश्वास करते ही नहीं। जो काम मैं अपने पिता के नाम से करता हूँ वे ही मेरे गवाह हैं, 26 परन्तु तुम इसलिये विश्वास नहीं करते क्योंकि मेरे लोगों में से नहीं हो। 27 मेरे लोग मेरा शब्द सुनते हैं, मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं, 28 और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ। वे कभी नष्ट न होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा। 29 मेरा पिता, जिसने उन्हें मुझ को दिया है, सब से बड़ा है और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता। 30 मैं और पिता एक हैं।’’
    31    यहूदियों ने उस पर पथराव करने को फिर पत्थर उठाए। 32 इस पर यीशु ने उनसे कहा, ‘‘ मैं ने तुम्हें अपने पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखए है, उन में से किस काम के लिये तुम मुझ पर पथराव करते हो?’’ 33 यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, ‘‘ भले काम के लिये हम तुझ पर पथराव नहीं करते परन्तु परमेश्वर की निन्दा करने के कारण , और इसलिये कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बनाता है।’’ 34 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, ‘‘क्या तुम्हारी व्यवस्था में नहीं लिखा है, ‘मैंने कहा, तुम ईश्वर हो’?35 यदि उसने उन्हें ईश्वर कहा जिनके पास परमेश्वर का वचन पहुँचा ;और पवित्राशास्त्रा की  बात असत्य नहीं हो सकतीद्ध, 36 तो जिसे पिता ने पवित्रा ठहराकर जगत में भेजा है, तुम उससे कहते हो, ‘ तू निन्दा करता है,’ इसलिये कि मैं ने कहा, ‘मैं परमेश्वर का पुत्रा हूँं’? 37 यदि मैं अपने पिता के काम नहीं करता, तो मेरा विश्वास न करो। 38 परन्तु यदि मैं करता हूँ, तो चाहे मेरा विश्वास न भी करो, परन्तु उन कामों का तो विश्वास करो, ताकि तुम जानों और समझो कि पिता मुझ में है और मैं पिता में हूँ।’’ 39 तब उन्होंने फिर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया परन्तु वह उन के हाथ से निकल गया।
परमेश्वर का पुत्रा सबके लिये
;यूहÂा 3ः16-21द्ध
16    ‘‘ क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्रा दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। 17 परमेश्वर ने अपने पुत्रा को जगत में इसलिये नहीं भेजा कि जगत पर दण्ड की आज्ञा दे, परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उ(ार पाए। 18 जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहर चुका, इसलिये कि उसने परमेश्वर के एकलौते पुत्रा के नाम पर विश्वास नहीं किया। 19 और दण्ड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्ध्कार को ज्योति से अध्कि प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे। 20 क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए। 21 परन्तु जो सत्य पर चलता है, वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।’’
यीशु के पीछे चलने का अर्थ
;मरकुस 8ः34-38द्ध
34 उसने भीड़ को अपने चेलों समेत पास बुलाकर उनसे कहा, ‘‘ जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आपे से इन्कार करे और अपना क्रूस उठाकर, मेरे पीछे हो ले। 35 क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, पर जो कोई मेरे और सुसमाचार के लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे बचाएगा। 36 यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? 37 मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा? 38 जो कोई इस व्यभिचारी और पापी जाति के बीच मुझ से और मेरी बातों से लजाएगा, मनुष्य का पुत्रा भी जब वह पवित्रा दूतों के साथ अपने पिता की महिमा सहित आएगा, तब उस से भी लजाएगा।’’
मजदूर थोड़े हैं
;मत्ती 9ः35-38द्ध
35 यीशु सब नगरों और गाँवों में फिरता रहा और उनके आराध्नालयों में उपदेश करता, और राज्य का सुसमाचार प्रचार करता, और हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता को दूर करता रहा। 36 जब उसने भीड़ को देखा तो उसको लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान जिनका कोई रखवाला न हो, व्याकुल और भटके हुए से थे। 37 तब उसने अपने चेलों से कहा, ‘‘ पके खेत तो बहुत हैं पर मजदूर थोड़े हैं। 38 इसलिये खेत के स्वामी से विनती करो कि वह अपने खेत काटने के लिए मजदूर भेज दे।’’
दो अंधें को दृष्टिदान
;मत्ती 9ः27-31द्ध
27 जब यीशु वहाँ से आगे बढ़ा, तो दो अंध्े उसके पीछे यह पुकारते हुए चले। हम पर दया कर ! 28 जब वह घर में पहुँचा, तो वे अंध्े उसके पास आए, और यीशु ने उनसे कहा, ‘‘क्या तुम्हें विश्वास है कि मैं यह कर सकता हूँ?’’ उन्होंने उससे कहा, ‘‘हाँ, प्रभु! 29 तब उसने उनकी आँखें छुकर कहा, ‘‘ तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे लिये हो।’’ 30 और उनकी आँखें खुल गई। यीशु ने उन्हें चिताकर कहा, ‘‘सावधन, कोई इस बात को न जाने।’’ 31 पर उन्होंने निकलकर सारे देश में उसका यश फैला दिया।
ध्नी मनुष्य और निधर््न लाजर
;लूका 16ः19-31द्ध
19 ‘‘ एक ध्नवान मनुष्य था जो बैंजनी कपड़े और मलमल पहिनता और प्रति दिन सुख-विलास और ध्ूम-धम के साथ रहता था। 20 लाजर नाम का एक कंगाल घावों से भरा हुआ उसकी डेवढ़ी पर छोड़ दिया जाता था, 21 और वह चाहता था कि ध्नवान की मेज पर की जूठन से अपना पेट भरे, यहाँ तक कि कुत्ते भी आकर उसके घावों को चाटते थे। 22 ऐसा हुआ कि वह कंगाल मर गया, और स्वर्गदूतों ने उसे लेकर अब्राहम की गोद में पहुँचाया। वह ध्नवान भी मरा और गाड़ा गया, 23 और अधेलोक में उसने पीड़ा में पड़े हुए अपनी आँखें उठाई, और दूर से अब्राहम की गोद में लाजर को देखा। 24 तब उसने पुकार कर कहा, ‘हे पिता अब्राहम, मुझ पर दया करके लाजर को भेज दे, ताकि वह अपनी उँगली का सिरा पानी में भिगोकर मेरी जीभ को ठंडी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूँ।’ 25 परन्तु अब्राहम ने कहा, ‘ हे पुत्रा, याद कर कि तू अपने जीवन में अच्छी वस्तुएँ ले चुका है, और वैसे ही लाजर बुरी वस्तुएँ परन्तु     अब वह यहाँ शान्ति पा रहा है, और तू तड़प रहा है। 26 इन सब बातों को छोड़ हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गड़हा ठहराया गया है कि जो यहाँ से उस पार तुम्हारे पास जाना चाहें, वे न जा सकें, और न कोई वहाँ से इस पार हमारे पास आ सके।’ 27 उसने कहा, ‘तो हे पिता, मैं तुझ से विनती करता हूँ कि तू उसे मेरे पिता के घर भेज, 28 क्योंकि मेरे पाँच भाई हैं, वह उनके सामने इन बातों की गवाही दे, ऐसा न हो कि वे भी इस पीड़ा की जगह में आएँ।’ 29 अब्राहम ने उससे कहा, ‘उनके पास तो मूसा और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकें हैं, वे उनकी सुनें।’ 30 उसने कहा, ‘नहीं, हे पिता अब्राहम, पर यदि कोई मरे हुओं में से उनके पास जाए, तो वे मन फिराएँगे।’ 31 उसने उससे कहा, ‘जब वे मूसा और भविष्यद्वक्ताओं की नहीं सुनते, तो यदि मरे हुओं में से कोई जी भी उठे तौभी उसकी नहीं मानेंगे’।’’
कोढ़ के दस रोगियों को चंगा करना
;लूका 17ः12-19द्ध

12 किसी गाँव में प्रवेश करते समय उसे दस कोढ़ी मिले। 13 उन्होंने दूर खड़े होकर ऊँचे शब्द से कहा, ‘‘ हे यीशु, हे स्वामी, हम पर दया कर!’’ 14 उसने उन्हें देखकर कहा, ‘‘जाओ, और अपने आपको याजकों को दिखाओ।’’ और जाते ही जाते वे शु( हो गए। 15 तब उनमें से एक यह देखकर कि मैं चंगा हो गया हूँ, ऊँचे शब्द से परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ लौटा, 16 और यीशु के पाँवों पर मुँह के बल गिरकर उसका ध्न्यवाद करने लगा, और वह सामरी था। 17 इस पर यीशु ने कहा,‘‘ क्या दसों शु( न हुए, तो फिर वे नौ कहाँ हैं? 18 क्या इस परदेशी को छोड़ कोई और न निकला जो परमेश्वर की बड़ाई करता?’’ 19 तब उसने उससे कहा, ‘‘उठकर चला जा, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।’’
बालकों को आशीर्वाद
;मरकुस 10ः13-16द्ध
13 फिर लोग बालकों को उसके पास लाने लगे कि वह उन पर हाथ रखे, पर चेलों ने उनको डाँटा। 14 यीशु ने यह देख क्रू( होकर उनसे कहा, ‘‘ बालकों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो, क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है। 15 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कोई परमेश्वर के राज्य को बालक के समान ग्रहण न करे, वह उसमें कभी प्रवेश करने न पाएगा।’’ 16 और उसने उन्हें गोद में लिया, और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष दी।
जो विरोध् में नहीं, वह पक्ष में
;मरकुस 9ः38-41द्ध
38 तब यूहत्रा ने उससे कहा, ‘‘हे गुरू, हम ने एक मनुष्य को तेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालते देखा और हम उसे मना करने लगे, क्योंकि वह हमारे पीछे नहीं हो लेता था।’’39 यीशु ने कहा, ‘‘ उस को मत मना करो, क्योंकि ऐसा कोई नहीं जो मेरे नाम से सामथ्र्य का काम करे, और जल्दी से मुझे बुरा कह सके, 40 क्योंकि जो हमारे विरोध् में नहीं, वह हमारी ओर है। 41 जो कोई एक कटोरा पानी तुम्हें इसलिये पिलाए कि तुम मसीह के हो तो मैं तुम से सच कहता हूँ कि वह अपना प्रतिफल किसी रीति से न खोएगा।
ध्नी व्यक्ति और अनन्त जीवन
;लूका 18ः18-30द्ध
18 किसी सरदार ने उससे पूछा, ‘‘ हे उत्तम गुरू, अनन्त जीवन का अध्किारी होने के लिये मैं क्या करूँ?’’ 19 यीशु ने उससे कहा, ‘‘तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक, अर्थात् परमेश्वर। 20 तू आज्ञाओं को तो जानता हैः ‘व्यभिचार न करना, हत्या न करना, और चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना।’।’’ 21 उसने कहा, ‘‘मैं तो इन सब को लड़कपन ही से मानता आया हूँ।’’ 22 यह सुन यीशु ने उससे कहा, ‘‘ तुझ में अब भी एक बात की घटी है, अपना सब कुछ बेचकर कंगालों को बाँट दे, और तुझे स्वर्ग में ध्न मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।’’ 23 वह यह सुनकर बहुत उदास हुआ, क्योंकि वह बड़ा ध्नी था। 24 यीशु ने उसे देखकर कहा, ‘‘ध्नवानों का परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कितना कठिन है! 25 परमेश्वर के राज्य में ध्नवान के प्रवेश करने से, ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है।’’ 26 इस पर सुनने वालों ने कहा, ‘‘ तो फिर किसका उ(ार हो सकता है?’’ 27 उसने कहा, ‘‘ जो मनुष्य से नहीं हो सकता, वह परमेश्वर से हो सकता है।’’ 28 पतरस ने कहा, ‘‘देख, हम तो घर-बार छोड़कर तेरे पीछे हो लिये हैं।’’ 29 उसने उनसे कहा, ‘‘ मैं तुम से सच कहता हूँ कि ऐसा कोई नहीं जिसने परमेश्वर के राज्य के लिए घर, या पत्नी, या भाईयों, या माता-पिता, या बाल-बच्चों को छोड़कर दिया हो, 30 और इस समय कई गुणा अध्कि न पाए और आने वाले युग में अनन्त जीवन।’’
अपनी मृत्यु के विषय यीशु की तीसरी
;लूका 18ः31-34द्ध
31 फिर उसने बारहों को साथ ले जाकर उनसे कहा, ‘‘देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं, और जितनी बातें मनुष्य के पुत्रा के लिये भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा लिखी गई हैं, वे सब पूरी होंगी। 32 क्योंकि वह अन्य जातियों के हाथ में सौंपा जाएगा, और वे उसे ठट्टों में उड़ाएँगे, और उसका अपमान करेंगे, और उस पर थूकेंगे, 33 और उसे कोड़े मारेंगे, और घात करेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा।’’ 34 पर उन्होंने इन बातों में से कोई बात न समझी, और यह बात उनसे छिपी रही, और जो कहा गया था वह उनकी समझ में न आया।
बोझ से दबे लोगों के लिए विश्राम
;मत्ती 11ः25-30द्ध
25 उसी समय यीशु ने कहा, ‘‘ हे पिता, स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु, मैं तेरा ध्न्यवाद करता हूँ कि तू ने इन बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा रखा, और बालकों पर प्रगट किया है। 26 हाँ, हे पिता, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा। 27 ‘‘मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है, और कोई पुत्रा को नहीं जानता, केवल पिता, और कोई पिता को नहीं जानता, केवल पुत्रा, और वह जिस पर पुत्रा उसे प्रगट करना चाहे। 28 ‘‘हे सब परिश्रम करने वालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। 29 मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो, और मुझ से सीखो, क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। 30 क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।
गत्रोसरत में रोगियों को चंगा करना
;मत्ती 14ः34-36द्ध
34 वे पार उतरकर गत्रोसरत में पहुँचे। 35 वहाँ के लोगों ने उसे पहचान लिया और आस-पास के सारे देश में समाचार भेजा, और सब बीमारों को उसके पास लाए, 36 और उससे विनती करने लगे कि वह उन्हें अपने वस्त्रा के आँचल ही को छूने दे, और जितनों ने उसे छुआ, वे चंगे हो गए।
मनुष्य को अशु( करने वाली बातें
;मरकुस 7ः14-23द्ध
14 तब उसने लोगों को अपने पास बुलाकर उनसे कहा, ‘‘ तुम सब मेरी सुनो, और समझो। 15 ऐसी कोई वस्तु नहीं जो मनुष्य में बाहर से समाकर उसे अशु( करे, परन्तु जो वस्तुएँ मनुष्य के भीतर से निकलती हैं, वे ही उसे अशु( करती हैं। 16 यदि किसी के सुनने के कान हों तो सुन ले।’’ 17 जब वह भीड़ के पास से घर में गया, तो उसके चेलों ने इस दृष्टान्त के विषय में उस से पूछा। 18 उसने उनसे कहा, ‘‘क्या तुम भी ऐसे नासमझ हो? क्या तुम नहीं समझते कि जो वस्तु बाहर से मनुष्य के भीतर जाती है, वह उसे अशु( नहीं कर सकती? 19 क्योंकि वह उसके मन में नहीं, परन्तु पेट में जाती है और संडास में निकल जाती है?’’ यह कहकर उसने सब भोजन वस्तुओं को शु( ठहराया। 20 फिर उसने कहा, ‘‘जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशु( करता है। 21 क्योंकि भीतर से, अर्थात् मनुष्य के मन से, बुरे बुरे विचार, व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्राीगमन, 22 लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं। 23 ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशु( करती हैं।’’
पतरस का विश्वास
;यूहÂा 6ः66-71द्ध

    66    इस पर उसके चेलों में से बहुत से उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले। 67 तब यीशु ने उन बारहों से कहा, ‘‘ क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?’’ 68 शमौन पतरस ने उसको उत्तर दिया, ‘‘ हे प्रभु, हम किसके पास जाएँ? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं, 69 और हम ने विश्वास किया और जान गए हैं कि परमेश्वर का पवित्रा जन तू ही है।’’ 70 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, ‘‘क्या मैंने तुम बारहों को नहीं चुना? तौभी तुम में से एक व्यक्ति शैतान है।’’ 71 यह उसने शमौन इस्करियोती के पुत्रा यहूदा के विषय में कहा था, क्यांेकि वही जो बारहों में से एक था, उसे पकड़वाने को था।


पतरस का यीशु को ‘मसीह’ स्वीकार करना
;मत्ती 16ः 13-19द्ध
13 यीशु कैसरिया फिलिप्पी के प्रदेश में आया, और अपने चेलों से पूछने लगा, ‘‘ लोग मनुष्य के पुत्रा को क्या कहते हैं?’’ 14 उन्होंने कहा, ‘‘कुछ तो यूहÂा बपतिस्मा देनेवाला कहते हैं, और कुछ एलिÕयाह, और कुछ यिर्मयाह या भविष्यद्वक्ताओं में से कोई एक कहते हैं।’’15 उसने उनसे कहा, ‘‘परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?’’16 शमौन पतरस ने उत्तर दिया, ‘‘तू जीवते परमेश्वर का पुत्रा मसीह है।’’ 17 यीशु ने उसको उत्तर दिया, ‘‘हे शमौन, योना के पुत्रा, तू ध्न्य है, क्योंकि मांस और लहू ने नहीं, परन्तु मेरे पिता ने जो स्वर्ग में है, यह बात तुझ पर प्रगट की है। 18 और मैं भी तुझ से कहता हूँ कि तू पतरस है, और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊँगा, और अधेलोक के फाटक उस पर प्रबल न होंगे। 19 मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा और जो कुछ तू पृथ्वी पर बाँध्ेगा, वह स्वर्ग में बंध्ेगा, और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा।’’
व्यभिचारिणी को क्षमा
;यूहÂा 8ः2-11-12द्ध
    2 भोर को वह फिर मन्दिर में आया, सब लोग उसके पास आए और वह बैठकर उन्हें उपदेश देने लगा। 3 तब शास्त्राी और फरीसी एक स्त्राी को लाए जो व्यभिचार में पकड़ी गई थी, और उसको बीच में खड़ा करके यीशु से कहा, 4 ‘‘ हे गुरू यह स्त्राी व्यभिचार करते पकड़ी गई है। 5 व्यवस्था में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रिायों पर पथराव करें। अतः तू इस स्त्राी के विषय में क्या कहता है?’’ 6 उन्होंने उसको परखने के लिये यह बात कही ताकि उस पर दोष लगाने के लिये कोई बात पाएँ। परन्तु यीशु झुककर उँगली से भूमि पर लिखने लगा। 7 जब वे उससे पूछते ही रहे, तो उसने सीध्े होकर उनसे कहा, ‘‘ तुम में जो निष्पाप हो, वही पहले उसको पत्थर मारे।’’ 8 और फिर झुककर भूमि पर उँगली से लिखने लगा। 9 परन्तु वे यह सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक, एक एक करके निकल गए, और यीशु अकेला रह गया, और स्त्राी वहीं बीच में खड़ी रह गई। 10 यीशु ने सीध्े होकर उससे कहा, ‘‘ हे नारी, वे कहाँ गए? क्या किसी ने तुझ पर दण्ड की आज्ञा न दी?’’ 11 उसने कहा, ‘‘ हे प्रभु, किसी ने नहीं।’’ यीशु ने कहा, ‘‘ मैं भी तुझ पर दण्ड की आज्ञा नहीं देता, जा, और फिर पाप न करना।’’
यीशु जगत की ज्योति
12    यीशु ने फिर लोगों से कहा, ‘‘ जगत की ज्योति मैं हूँ, जो मेरे पीछे हो लेगा वह अन्ध्कार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।’’

पवित्रा आत्मा की प्रतिज्ञा
;यूहÂा 14ः15-19, 25-27, 15ः7,12,13द्ध

    15    ‘‘ यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे। 16 मैं पिता से विनती करूँगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे। 17 अर्थात् सत्य का आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है, तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा।
    18    ‘‘ मैं तुम्हे अनाथ नहीं छोडूँगा, मैं तुम्हारे पास आता हूँ। 19 और थोड़ी देर रह गई है कि फिर संसार मुझे न देखेगा, परन्तु तुम मुझे देखोगे, इसलिये कि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे।
 25 ‘‘ ये बातें मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कहीं। 26 परन्तु सहायक अर्थात् पवित्रा आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा। 27 मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ, जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन व्याकुल न हो और न डरे।
7 यदि तुम मुझ में बने रहो और मेरा वचन तुम में बना रहे, तो जो चाहो माँगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा। 12‘‘मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। 13 इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।
यीशु का प्राण देना फिर लेना
;यूहÂा 10ः17-18द्ध

17 पिता इसलिये मुझ से प्रेम रखता है कि मैं अपना प्राण देता हूँ कि उसे फिर ले लूँ। 18 कोई उसे मुझ से छीनता नहीं, वरन् मैं उसे आप ही देता हूँ। मुझे उसके देने का भी अध्किार है, और उसे फिर ले लेने का भी अध्किार हैः  यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है।’’
हेरोदेस की शत्राुता
;लूका 13ः31-33द्ध
31 उसी घड़ी कुछ फरीसियों ने आकर उससे कहा, ‘‘ यहाँ से निकलकर चला जा, क्योंकि हेरोदेस तुझे मार डालना चाहता है।’’ 32 उसने उनसे कहा, ‘‘जाकर उस लोमड़ी से कह दो कि देख, मैं आज और कल दुष्टात्माओं को निकालता और बीमारों को चंगा करता हूँ, और तीसरे दिन अपना कार्य पूरा करूँगा। 33 तौभी मुझे आज और कल और परसों चलना अवश्य है, क्योंकि हो नही सकता कि कोई भविष्यद्वक्ता यरूशलेम के बाहर मारा जाए।
ध्न्य कौन है?
;लूका 11ः27-28द्ध
27 जब वह ये बातें कह ही रहा था तो भीड़ में से किसी स्त्राी ने ऊँचे शब्द से कहा, ‘‘ ध्न्य है वह गर्भ जिसमें तू रहा और वो छाती जिससे तूने दूध् पिया। 28 उसने कहा, ‘‘हाँ, परन्तु ध्न्य वे हैं जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।’’
मन्दिर के विनाश की भविष्यद्वाणी
;मत्ती 24ः1-2द्ध
जब यीशु मन्दिर से निकलकर जा रहा था, तो उसके चेले उसको मन्दिर की रचना दिखाने के लिये उसके पास आए। 2 उसने उनसे कहा, ‘‘ तुम यह सब देख रहे हो न! मैं तुम से सच कहता हूँ, यहाँ पत्थर पर पत्थर भी न छूटेगा जो ढाया न जाएगा।
संकट और क्लेश
;मत्ती 24ः3-14द्ध
3 जब वह जैतून पहाड़ पर बैठा था, तो चेलों ने एकान्त में उसके पास आकर कहा, ‘‘हमें बता कि ये बातें कब होंगी? तेरे आने का और जगत के अन्त का क्या चिर् िंहोगा?’’ 4 यीशु ने उनको उत्तर दिया, ‘‘सावधन रहो! कोई तुम्हें न भरमाने पाए, 5 क्योंकि बहुत से ऐसे होंगे जो मेरे नाम से आकर कहेंगे, ‘मैं मसीह हूँ’ और बहुतों को भरमाएँगे। 6 तुम लड़ाइयों और लड़ाइयों की चर्चा सुनोगे, तो घबरा न जाना क्योंकि इनका होना अवश्य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा। 7 क्योंकि जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और जगह जगह अकाल पड़ेंगे, और भूकम्प होंगे। 8 ये सब बातें पीड़ाओं का आरम्भ होंगी। 9 तब वे क्लेश देने के लिये तुम्हें पकड़वाएँगे, और तुम्हें मार डालेंगे, और मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे। 10 तब बहुत से ठोकर खाएँगे, और एक दूसरे को पकड़वाएँगे, और एक दूसरे से बैर रखेंगे। 11 बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बहुतों को भरमाएँगे। 12 अध्र्म के बढ़ने से बहुतों का प्रेम ठण्डा पड़ जाएगा, 13 परन्तु जो अन्त तक ध्ीरज ध्रे रहेगा, उसी का उ(ार होगा। 14 और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।
महासंकट का आरम्भ
;मत्ती 24ः16-27द्ध
16 तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएँ। 17 जो छत पर हो, वह अपने घर में से सामान लेने को न उतरे, 18 और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने को पीछे न लौटे। 19 उन दिनों में जो गर्भवती और दूध् पिलाती होंगी, उन के लिये हाय, हाय। 20 प्रार्थना किया करो कि तुम्हें जाड़े में या सब्त के दिन भागना न पड़े। 21 क्योंकि उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ और न कभी होगा। 22 यदि वे दिन घटाए न जाते तो कोई प्राणी न बचता, परन्तु चुने हुओं के कारण वे दिन घटाए जाएँगे। 23 उस समय यदि कोई तुम से कहे, ‘देखो, मसीह यहाँ है।’ या ‘वहाँ है!’ तो विश्वास न करना। 24 क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे और बड़े चिर्,िं और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें। 25 देखो, मैं ने पहले से तुम से यह सब कुछ कह दिया है। 26 इसलिये यदि वे तुम से कहें, ‘देखो, वह जंगल में है’, तो बाहर न निकल जाना, या ‘देखो, वह कोठरियों में है,’ तो विश्वास न करना। 27 क्योंकि जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्रा का भी  आना होगा।
मनुष्य के पुत्रा का पुनरागमन
;मत्ती 24ः29-31, 33-35द्ध
29 ‘‘उन दिनों के क्लेश के तुरन्त बाद सूर्य अन्ध्यिारा हो जाएगा, और चन्द्रमा का प्रकाश जाता रहेगा, और तारे आकाश से गिर पड़ेंगे और आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी। 30 तब मनुष्य के पुत्रा का चिर् िंआकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे, और मनुष्य के पुत्रा को बड़ी सामथ्र्य और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे। 31 वह तुरही के बड़े शब्द के साथ अपने दूतों को भेजेगा, और वे आकाश के इस छोर से उस छोर तक, चारों दिशाओं से उसके चुने हुओं को इक्टठा करेंगे। 33 इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो कि वह निकट है, वरन् द्वार ही पर है। 34 मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का अन्त नहीं होगा। 35 आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी।
जागते रहो
;मत्ती 24ः36-44द्ध
36 ‘‘उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्रा, परन्तु केवल पिता। 37 जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्रा का आना भी होगा। 38 क्योंकि जैसे जल-प्रलय से पहले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उनमें विवाह होते थे। 39 और जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उनको कुछ भी मालूम न पड़ा, वैसे ही मनुष्य के पुत्रा का आना भी होगा। 40 उस समय दो जन खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। 41 दो स्त्रिायाँ चक्की पीसती रहेंगी, एक ले ली जाएगी और दूसरी छोड़ दी जाएगी। 42 इसलिये जागते रहो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारा प्रभु किस दिन आएगा। 43 परन्तु यह जान लो कि यदि घर का स्वामी जानता होता कि चोर किस पहर आएगा तो जागता रहता, और अपने घर में सेंध् लगने न देता। 44 इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्रा आ जाएगा। 

न्याय का दिन
;मत्ती 25ः31-46द्ध 
31 ‘‘ जब मनुष्य का पुत्रा अपनी महिमा में आएगा और सब स्वर्गदूत उसके साथ आएँगे, तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। 32 और सब जातियाँ उसके सामने इक्ट्ठा की जाएँगी, और जैसे चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसे ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। 33 वह भेड़ों को अपनी दाहिनी ओर और बकरियों को बाईं ओर खड़ा करेगा। 34 तब राजा अपनी दाहिनी ओर वालों से कहेगा, ‘हे मेरे पिता के ध्न्य लोगो, आओ, उस राज्य के अध्किारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया गया है। 35 क्योंकि मैं भूखा था, और तुमने मुझे खाने को दिया, मैं प्यासा था, और तुमने मुझे पानी पिलाया, मैं परदेशी था, और तुम ने मुझे अपने घर में ठहराया, 36 मैं नंगा था, और तुमने मुझे कपड़े पहिनाए, मैं बीमार था, और तुमने मेरी सुध् िली, मैं बन्दीगृह में था, और तुम मुझसे मिलने आए।’ 37 ‘‘ तब ध्र्मी उसको उत्तर देंगे, ‘हे प्रभु, हम ने कब तुझे भूखा देखा और खिलाया? या प्यासा देखा और पानी पिलाया? 38 हमने कब तुझे परदेशी देखा और अपने घर में ठहराया? या नंगा देखा और कपड़े पहिनाए? 39 हमने कब तुझे बीमार या बन्दीगृह में देखा और तुझसे मिलने आए?’ 40 तब राजा उन्हें उत्तर देगा, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुमने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाईयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।’ 41 ‘‘ तब वह बाई ओर वालों से कहेगा, ‘हे शापित लोगो, मेरे सामने से उस अनन्त आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है। 42 क्योंकि मैं भूखा था, और तुमने मुझे खाने को नहीं दिया, मैं प्यासा था, और तुमने मुझे पानी नहीं पिलाया, 43 मैं परदेशी था, और तुम ने मुझे अपने घर में नहीं ठहराया, मैं नंगा था, और तुमने मुझे कपड़े नहीं पहिनाए, मैं बीमार और बन्दीगृह में था, और तुमने मेरी सुध् िन ली।’ 44 ‘‘ तब वे उत्तर देंगे, ‘हे प्रभु, हमने तुझे कब भूखा, या प्यासा, या परदेशी, या नंगा, या बीमार, या बन्दीगृह में देखा, और तेरी सेवा टहल न की?’ 45 तब वह उन्हें उत्तर देगा, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ कि तुमने जो इन छोटे से छोटों में से किसी एक के साथ नहीं किया, वह मेरे साथ भी नहीं किया।’ 46 और ये अनन्त दण्ड भोगेंगे परन्तु ध्र्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।’’
यीशु के विरू( षड्यन्त्रा
;मत्ती 26ः1-5द्ध
जब यीशु ये सब बातें कह चुका तो अपने चेलों से कहने लगा, 2 ‘‘ तुम जानते हो कि दो दिन के बाद मनुष्य का पुत्रा क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए पकड़वाया जाएगा।’’ 3 तब प्रधन याजक और प्रजा के पुरनिए काइफा नामक महायाजक के आँगन में इक्ट्ठा हुए, 4 और आपस में विचार करने लगे कि यीशु को छल से पकड़कर मार डालें। 5 परन्तु वे कहते थे ‘‘पर्व के समय नहीं, कहीं ऐसा न हो कि लोगों में बलवा मच जाए।’’

यहूदा इस्करियोती का विश्वासघात
;मत्ती 26ः14-16द्ध

14 तब यहूदा इस्करियोती ने, जो बारह चेलों में से एक था, प्रधन याजकों के पास जाकर कहा, 15 ‘‘यदि मैं उसे तुम्हारे हाथ पकड़वा दूँ तो मुझे क्या दोगे?’’ उन्होंने उसे तीस चाँदी के सिक्के तौलकर दे दिए। 16 और वह उसी समय से उसे पकड़वाने का अवसर ढँूढ़ने लगा।
जैतून के पहाड़ पर यीशु की प्रार्थना
;लूका 22ः39-46द्ध
39 तब वह बाहर निकलकर अपनी रीति के अनुसार जैतून के पहाड़ पर गया, और चेले उसके पीछेे हो लिए। 40 उस जगह पहुँचकर उसने उनसे कहा, ‘‘प्रार्थना करो कि तुम परीक्षा में न पड़ो।’’ 41 और वह आप उनसे अलग एक ढेला फेंकने की दूरी भर गया, और घुटने टेक कर प्रार्थना करने लगा, 42 ‘‘ हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।’’ 43 तब स्वर्ग से एक दूत उसको दिखाई दिया जो उसे सामथ्र्य देता था। 44 वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी हार्दिक वेदना से प्रार्थना करने लगा, और उसका पसीना मानो लहू की बड़ी बड़ी बूँदों के समान भूमि पर गिर रहा था। 45 तब वह प्रार्थना से उठा और अपने चेलों के पास आकर उन्हें उदासी के मारे सोता पाया 46 और उनसे कहा, ‘‘क्यों सोते हो? उठो, प्रार्थना करो कि परीक्षा में न पड़ो।’’
यीशु का धेखे से पकड़ा जाना
;मत्ती 26ः47-56द्ध
47 वह यह कह ही रहा था कि यहूदा जो बारहों में से एक था आया, और उसके साथ प्रधन याजकों और लोगों के पुरनियों की ओर से बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिये हुए आई। 48 उसके पकड़वाने वाले ने उन्हें यह संकेत दिया था ‘‘ जिसको मैं चूम लूँ वही है, उसे पकड़ लेना।’’ 49 और तुरन्त यीशु के पास आकर कहा, ‘‘हे रब्बी , नमस्कार!’’ और उसको बहुत चूमा। 50 यीशु ने उससे कहा, ‘‘हे मित्रा, जिस काम के लिये तू आया है, उसे कर ले।’’ तब उन्होंने पास आकर यीशु पर हाथ डाले और उसे पकड़ लिया। 51 यीशु के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ाकर अपनी तलवार खींच ली और महायाजक के दास पर चलाकर उस का कान उड़ा दिया। 52 तब यीशु ने उससे कहा, ‘‘अपनी तलबार म्यान में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं वे सब तलवार से नष्ट किए जाएँगे। 53 क्या तू नहीं जानता कि मैं अपने पिता से विनती कर सकता हूँ, और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अध्कि मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा? 54 परन्तु पवित्राशास्त्रा की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य है, कैसे पूरी होंगी?’’ 55 उस समय यीशु ने भीड़ से कहा, ‘‘क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू के समान पकड़ने के लिये निकले हो? मैं हर दिन मन्दिर में बैठकर उपदेश दिया करता था, और तुम ने मुझे नहीं पकड़ा। 56 परन्तु यह सब इसलिये हुआ है कि भविष्यद्वक्ताओं के वचन पूरे हों।’’तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए।
महासभा के सामने यीशु
;मत्ती 26ः57,59-68द्ध
57 तब यीशु के पकड़नेवाले उसको काइफा नामक महायाजक के पास ले गए, जहाँ शास्त्राी और पुरनिए इक्ट्ठा हुए थे। 59 प्रधन याजक और सारी महासभा यीशु को मार डालने के लिये उसके विरोध् में झूठी गवाही की खोज में थे, 60 परन्तु बहुत से झूठे गवाहों के आने पर भी न पाई। अन्त में दो जन आए, 61 और कहा, ‘इसने कहा है कि मैं परमेश्वर के मन्दिर को ढा सकता हूँ और उसे तीन दिन में बना सकता हूँ।’’ 62 तब महायाजक ने खड़े होकर यीशु से कहा, ‘‘ क्या तू कोई उत्तर नहीं देता? ये लोग तेरे विरोध् में क्या गवाही देते हैं?’’ 63 परन्तु यीशु चुप रहा। तब महायाजक ने उससे कहा, ‘‘मैं तुझे जीवते परमेश्वर की शपथ देता हूँ कि यदि तू परमेश्वर का पुत्रा मसीह है, तो हम से कह दे।’’ 64 यीशु ने उससे कहा, ‘‘तू ने आप ही कह दिया, वरन् मैं तुम से यह भी कहता हूँ कि अब से तुम मनुष्य के पुत्रा को सर्वशक्तिमान के दाहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों पर आते देखोगे।’’ 65 इस पर महायाजक ने अपने वस्त्रा फाड़े और कहा, ‘‘इसने परमेश्वर की निन्दा की है, अब हमें गवाहों का क्या प्रयोजन? देखो, तुम ने अभी यह निन्दा सुनी है! 66 तुम क्या सोचते हो?’’ उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘ यह वध् होने के योग्य है।’’ 67 तब उन्होंने उसके मुँह पर थूका और उसे घूँसे मारे, दूसरों ने थप्पड़ मार के कहा, 68 ‘‘हे मसीह, हम से भविष्यद्वाणी करके कह कि किसने तुझे मारा?’’
पिलातुस के प्रश्न
;मत्ती 27ः11-14द्ध
11 जब यीशु हाकिम के सामने खड़ा था तो हाकिम ने उससे पूछा, ‘‘क्या तू यहूदियों का राजा है?’’ यीशु ने उससे कहा, ‘‘ तू आप ही कह रहा है।’’ 12 जब प्रधन याजक और पुरनिए उस पर दोष लगा रहे थे, तो उसने कुछ उत्तर नहीं दिया। 13 इस पर पिलातुस ने उससे कहा, ‘‘क्या तू नहीं सुनता कि ये तेरे विरोध् में कितनी गवाहियाँ दे रहे हैं?’’ 14 परन्तु उसने उसको एक बात का भी उत्तर नहीं दिया, यहाँ तक कि हाकिम को बड़ा आश्चर्य हुआ।
मृत्यु -दण्ड की आज्ञा
;मत्ती 27ः15-26द्ध
15 हाकिम की यह रीति थी कि उस पर्व में लोगों के लिये किसी एक बन्दी को जिसे वे चाहते थे, छोड़ देता था। 16 उस समय उनके यहाँ बरअब्बा नामक एक माना हुआ बन्दी था। 17 अतः जब वे इक्ट्ठा हुए, तो पिलातुस ने उनसे कहा, ‘‘ तुम किसको चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये छोड़ दूँ? बरअब्बा को, या यीशु को जो मसीह कहलाता है?’’ 18 क्योंकि वह जानता था कि उन्होंने उसे डाह से पकड़वाया है। 19 जब वह न्याय की गद्दी पर बैठा हुआ था तो उसकी पत्नी ने उसे कहला भेजा,‘‘ तू उस ध्र्मी के मामले में हाथ न डालना, क्योंकि मैंनंे आज स्वप्न में उसके कारण बहुत दुःख उठाया है।’’ 20 प्रधन याजकों और पुरनियों ने लोगों को उभारा कि वे बरअब्बा को माँग लें, और यीशु का नाश कराएँ। 21 हाकिम ने उनसे पूछा, ‘‘इन दोनों में से किस को चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये छोड़ दूँ?’’ उन्होंने कहा, बरअब्बा को।’’22 पिलातुस ने उनसे पूछा, ‘‘ फिर यीशु को, जो मसीह कहलाता है, क्या करूँ?’’ सबने उससे कहा, ‘‘ क्रूस पर चढ़ाया जाए!’’ 23 हाकिम ने कहा, ‘‘क्यों, उसने क्या बुराई की है?’’ परन्तु वे और भी चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे, ‘‘वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।’’ 24 जब पिलातुस ने देखा कि कुछ बन नहीं पड़ता परन्तु इसके विपरीत हुल्लड़ बढ़ता जाता है तो उसने पानी लेकर भीड़ के सामने अपने हाथ धेए और कहा, ‘‘मैं इस ध्र्मी के लहू से निर्दोष हूँ, तुम ही जानो।’’ 25 सब लोगों ने उत्तर दिया, ‘‘ इसका लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो।’’ 26 इस पर उसने बरअब्बा को उनके लिये छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए।
सिपाहियों द्वारा यीशु का अपमान
;मत्ती 27ः27-31द्ध
27 तब हाकिम के सिपाहियों ने यीशु को किले में ले जाकर सारी पलटन उसके चारों ओर इक्टठी की, 28 और उसके कपड़े उताकर उसे लाल रंग का बागा पहिनाया, 29 और काँटों का मुकुट गूँथकरह उसके सिर पर रखा, और उसके दाहिने हाथ में सरकण्डा दिया और उसके आगे घुटने टेककर उसे ठट्टो में उड़ाने लगे और कहा, ‘‘हे यहूदियों के राजा, नमस्कार!’’ 30 और उस पर थूका, और वही सरकण्डा लेकर उसके सिर पर मारने लगे। 31 जब वे उसका ठट्टा कर चुके, तो वह बागा उस पर से उतार फिर उसी के कपड़े उसे पहिनाए, और क्रूस पर चढ़ाने के लिये ले चले।
यीशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना
;लूका 23ः27-38द्ध
27 लोगों की बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली और उसमें बहुत सी स्त्रिायाँ भी थीं जो उसके लिये छाती-पीटती और विलाप करती थीं। 28 यीशु ने उनकी ओर मुड़कर कहा, ‘‘हे यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिये मत रोओ, परन्तु अपने और अपने बालकों के लिये रोओ। 29 क्योंकि देखो, वे दिन आते हैं, जिनमें लोग कहेंगे, ‘ध्न्य हैं वे जो बाँझ हैं और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध् न पिलाया।’’ 30 उस समय ‘वे पहाड़ों से कहने लगेंगे कि हम पर गिरो, और टीलों से कि हमें ढाँप लो।’ 31 क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साथ ऐसा करते हैं, तो सूखे के साथ क्या कुछ न किया जाएगा?’’32 वे अन्य दो मनुष्यों को भी जो कुकर्मी थे उसके साथ घात करने को ले चले। 33 जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुँचे, तो उन्होंने वहाँ उसे और उन कुकर्मियों को भी, एक को दाहिनी और दूसरे को बाई ओर क्रूसों पर चढ़ाया। 34 तब यीशु ने कहा, ‘‘हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।’’ और उन्होंने चिट्ठियां डालकर उसके कपड़े बाँट लिए। 35 लोग खड़े-खड़े देख रहे थे, और सरदार भी ठट्टा कर करके कहते थे ‘‘इसने दूसरों को बचाया, यदि यह परमेश्वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले।’’ 36 सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका ठट्टा करके कहते थे, 37 ‘‘यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने आप को बचा!’’ 38 और उसके ऊपर एक दोष-पत्रा भी लगा था। ‘‘यह यहूदियों का राजा है।’’
मन फिराने वाला कुकर्मी
;लूका 23ः39-43द्ध
39 जो कुकर्मी वहाँ लटकाए गए थे, उनमें से एक ने उसकी निन्दा करके कहा, ‘‘क्या तू मसीह नहीं? तो फिर अपने आप को और हमें बचा!’’ 40 इस पर दूसरे ने उसे डाँटकर कहा, ‘‘क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है, 41 और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं, पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।’’ 42 तब उसने कहा, ‘‘हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुध् िलेना।’’ 43 उसने उससे कहा, ‘‘ मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।
यीशु का प्राण त्यागना
;लूका 23ः44-49द्ध
44 लगभग दो पहर से तीसरे पहर तक सारे देश में अन्ध्यिारा छाया रहा, 45 और सूर्य का उजियाला जाता रहा, और मन्दिर का परदा बीच से फट गया, 46 और यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा, ‘‘हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।’’ और यह कहकर प्राण छोड़ दिए। 47 सूबेदार ने, जो कुछ हुआ था देखकर परमेश्वर की बड़ाई की, और कहा, ‘‘निश्चय यह मनुष्य ध्र्मी था।’’ 48 और भीड़ जो यह देखने को इक्ट्ठी हुई थी, इस घटना को देखकर छाती पीटती हुई लौट गई। 49 पर उसके सब जान पहचान, और जो स्त्रिायाँ गलील से उसके साथ आई थीं, दूर खड़ी हुई यह सब देख रहीं थीं।
यीशु का गाड़ा जाना
;लूका 23ः53-56द्ध
53 और उसे उतारकर मलमल की चादर में लपेटा, और एक कब्र में रखा, जो चट्टान में खुदी हुई थी, और उसमें कोई कभी न रखा गया था। 54 वह तैयारी का दिन था, और सब्त का दिन आरम्भ होने पर था। 55 उन स्त्रिायों ने जो उसके साथ गलील से आई थी, पीछे पीछे जाकर उस कब्र को देखा, और यह भी कि उसका शव किस रीति से रखा गया है। 56 तब उन्होंने लौटकर सुगन्ध्ति वस्तुएँ और इत्रा तैयार किया, और सब्त के दिन उन्होंने आज्ञा के अनुसार विश्राम किया।
यीशु का पुनरूत्थान
;लूका 24ः1-12द्ध
परन्तु सप्ताह के पहले दिन बड़े भोर को वे उन सुगन्ध्ति वस्तुओं को जो उन्होंने तैयार की थीं, ले कर कब्र पर आई। 2 उन्होंने पत्थर को कब्र पर से लुढ़का हुआ पाया, 3 पर भीतर जाकर प्रभु यीशु का शव न पाया। 4 जब वे इस बात से भौचक्की हो रही थीं तो देखो,दो पुरूष झलकते वस्त्रा पहिने हुए उनके पास आ खड़े हुए। 5 जब वे डर गई और ध्रती की ओर मुँह झुकाए रहीं तो उन्होंने उनसे कहा, ‘‘तुम जीवते को मरे हुओं में क्यों ढँूढती हो? 6 वह यहाँ नहीं, परन्तु जी उठा है। स्मरण करो कि उसने गलील में रहते हुए तुम से कहा था, 7 ‘अवश्य है कि मनुष्य का पुत्रा पापियों के हाथ में पकड़वाया जाए, और क्रूस पर चढ़ाया जाए, और तीसरे दिन जी उठे’।’’ 8 तब उसकी बातें उनको स्मरण आई, 9 और कब्र से लौटकर उन्होंने उन ग्यारहों को, और अन्य सब को, ये सब बातें कह सुनाई। 10 जिन्होंने प्रेरितों से ये बातें कहीं वे मरियम मगदलीनी और योअÂा और याकूब की माता मरियम और उनके साथ की अन्य स्त्रिायाँ भी थीं। 11 परन्तु उनकी बातें उन्हें कहानी सी जान पड़ीं और उन्होंने उनकी प्रतीति न की। 12 तब पतरस उठकर कब्र पर दौड़ा गया, और झुककर केवल कपड़े पड़े देखे, और जो हुआ था उससे अचम्भा करता हुआ अपने घर चला गया।
इम्माऊस के मार्ग पर चेलों के साथ
;लूका 24ः13-35द्ध
13 उसी दिन उनमें से दो जन इम्माऊस नामक एक गाँव को जा रहे थे, जो यरूशलेम से कोई सात मील की दूरी पर था। 14 वे इन सब बातों पर जो हुई थीं, आपस में बातचीत करते जा रहे थे, 15 और जब वे आपस में बातचीत और पूछताछ कर रहे थे, तो यीशु आप पास आकर उनके साथ हो लिया। 16 परन्तु उनकी आँखें ऐसी बन्द कर दी गई थीं कि उसे पहिचान न सके। 17 उसने उन से पूछा, ‘‘ ये क्या बातें हैं, जो तुम चलते चलते आपस में करते हो?’’ वे उदास से खड़े रह गए। 18 यह सुनकर उनमें से क्लियोपास नामक एक व्यक्ति ने कहा, ‘‘क्या तू यरूशलेम में अकेला परदेशी है, जो नहीं जानता कि इन दिनों में उसमें क्या क्या हुआ है?’’19 उसने उनसे पूछा, ‘‘ कौन सी बातें?’’ उन्होंने उस से कहा, ‘‘यीशु नासरी के विषय में जो परमेश्वर और सब लोगों के निकट काम और वचन में सामर्थी भविष्यद्वक्ता था, 20 और प्रधन याजकों और हमारे सरदारों ने उसे पकड़वा दिया कि उस पर मृत्यु की आज्ञा दी जाए, और उसे क्रूस पर चढ़वाया। 21 परन्तु हमें आशा थी कि यही इस्त्राएल को छुटकारा देगा। इन सब बातों के सिवाय इस घटना को हुए तीसरा दिन है, 22 और हम में से कई स्त्रिायों ने भी हमें आश्चर्य में डाल दिया है, जो भोर को कब्र पर गई थीं, 23 और जब उसका शव न पाया तो यह कहती हुई आई कि हम ने स्वर्गदूतों का दर्शन पाया, जिन्होंने कहा कि वह जीवित है। 24 तब हमारे साथियों में से कई एक कब्र पर गए, और जैसा स्त्रिायों ने कहा था वैसा ही पाया, परन्तु उसको न देखा।’’ 25 तब उसने उनसे कहा, ‘‘हे निर्बु(ियों, और भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्दमतियो! 26 क्या अवश्य न था कि मसीह ये दुःख उठाकर अपनी महिमा में प्रवेश करे?’’ 27 तब उसने मूसा से और सब भविष्य-द्वक्ताओं से आरम्भ करके सारे पवित्राशास्त्रा में से अपने विषय में लिखी बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया। 28 इतने में वे उस गाँव के पास पहुँचे जहाँ वे जा रहे थे, और उसके ढंग से ऐसा जान पड़ा कि वह आगे बढ़ना चाहता है। 29 परन्तु उन्होंने यह कहकर उसे रोका, ‘‘ हमारे साथ रह, क्योंकि रात हो चली है और दिन अब बहुत ढल गया है।’’ तब वह उनके साथ रहने के लिये भीतर गया। 30 जब वह उनके साथ भोजन करने बैठा, तो उसने रोटी लेकर ध्न्यवाद किया और उसे तोड़कर उनको देने लगा। 31 तब उनकी आँखें खुल गई, और उन्होंने उसे पहचान लिया, और वह उनकी आँखों से छिप गया। 32 उन्होंने आपस में कहा, ‘‘ जब वह मार्ग में हम से बातें करता था और पवित्राशास्त्रा का अर्थ हमें समझाता था, तो क्या हमारे मन में उत्तेजना न उत्पÂ हुई?’’ 33 वे उसी घड़ी उठकर यरूशलेम को लौट गए, और उन ग्यारहों और उनके साथियों को इक्ट्ठे पाया। 34 वे कहते थे, ‘‘प्रभु सचमुच जी उठा है, और शमौन को दिखाई दिया है।’’ 35 तब उन्होंने मार्ग की बातें उन्हें बता दीं और यह भी कि उन्होंने उसे रोटी तोड़ते समय कैसे पहचाना।
यीशु का चेलों को दिखाई देना
;लूका 24ः36-49द्ध
36 वे ये बातें कह ही रहे थे कि वह आप ही उनके बीच में आ खड़ा हुआ, और उनसे कहा, ‘‘तुम्हें शान्ति मिले।’’ 37 परन्तु वे घबरा गए और डर गए, और समझे कि हम किसी भूत को देख रहे हैं। 38 उसने उनसे कहा, ‘‘ क्यों घबराते हो? और तुम्हारे मन में क्यों सन्देह उठते हैं? 39 मेरे हाथ और मेरे पाँव को देखो कि मैं वही हूँ। मुझे छूकर देखो, क्योंकि आत्मा के हड्डी माँस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो।’’ 40 यह कहकर उसने उन्हें अपने हाथ पाँव दिखाए। 41 जब आनन्द के मारे उनको प्रतीति न हुई, और वे आश्चर्य करते थे, तो उसने उनसे पूछा, ‘‘ क्या यहाँ तुम्हारे पास कुछ भोजन है?’’ 42 उन्होंने उसे भुनी हुई मछली का टुुकड़ा दिया। 43 उसने लेकर उनके सामने खाया। 44 फिर उसने उनसे कहा, ‘‘ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कही थीं कि अवश्य है कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्द्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों।’’ 45 तब उस ने पवित्राशास्त्रा बूझने के लिये उनकी समझ खोल दी, 46 और उनसे कहा, ‘‘यों लिखा है कि मसीह दुःख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा, 47 और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा। 48 तुम इन सब बातों के गवाह हो। 49 और देखो, जिसकी प्रतिज्ञा मेरे पिता ने की है, मैं उसको तुम पर उतारूँगा और जब तक स्वर्ग से सामथ्र्य न पाओ, तब तक तुम इसी नगर में ठहरे रहो।’’
यीशु का स्वर्ग पर जाना
24 परन्तु बारहों में से एक अर्थात् थोमा जब यीशु आया तो उनके साथ न था। 25 जब अन्य चेले उससे कहने लगे, ‘‘हम ने प्रभु को देखा है,’’ तब उसने उनसे कहा, ‘‘ जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के छेद न देख लूँ, और कीलों के छेदों में अपनी उँगली न डाल लूँ, और उसके पंजर में अपना हाथ न डाल लूँ, तब तक मैं विश्वास नहीं करूँगा।’’ 26 आठ दिन के बाद उसके चेले फिर घर के भीतर थे, और थोमा उनके साथ था, और द्वार बन्द थे, तब यीशु आया और उनके बीच में खड़े होकर कहा, ‘‘ तुम्हें शान्ति मिले।’’ 27 तब उसने थोमा से कहा, ‘‘अपनी उँगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल, और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।’’ 28 यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, ‘‘ हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!’’ 29 यीशु ने उससे कहा, ‘‘तू ने मुझे देखा है, क्या इसलिये विश्वास किया है? ध्न्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया।’’ ;यूहÂा 20ः24-29द्ध
यीशु ने उनके पास आकर कहा, ‘‘ स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अध्किार मुझे दिया गया है। 19 इसलिये तुम जाओ, सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ, और उन्हें पिता, और पुत्रा, और पवित्रा आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, 20 और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदा तुम्हारे संग हूँ।’’;मत्ति 28ः18-20द्ध और उसने उनसे कहा, ‘‘तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो। 16 जो विश्वास करे और बपतिस्मा ले उसी का उ(ार होगा, परन्तु जो विश्वास न करेगा वह दोषी ठहराया जाएगा 17 विश्वास करने वालों में ये चिर् िंहोंगे कि वे मेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालेंगे, नई नई भाषा बोलेंगे, 18 साँपों को उठा लेंगे, और यदि वे प्राणनाशक वस्तु भी पी जाएँ तौभी उनकी कुछ हानि न होगी, वे बीमारों पर हाथ रखेंगे, और वे चंगे हो जाएँगे।’’;मरकुस 16ः15-18द्ध अतः उन्होंने इक्ट्ठे होकर उससे पूछा, ‘‘ हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्त्राएल को राज्य फेर देगा?’’ 7 उसने उनसे कहा, ‘‘उन समयों या कालों को जानना, जिनको पिता ने अपने ही अध्किार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं। 8 परन्तु जब पवित्रा आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामथ्र्य पाओगे, और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।’’ 9 यह कहकर वह उन के देखते-देखते ऊपर उठा लिया गया, और बादल ने उसे उनकी आँखों से छिपा लिया। 10 उसके जाते समय जब वे आकाश की ओर ताक रहे थे, तो देखो, दो पुरूष श्वेता वस्त्रा पहिने हुए उनके पास, आ खड़े हुए, 11 और उनसे कहा, ‘‘हे गलीली पुरूषो, तुम क्यों खड़े आकाश की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा।’’;प्रेरितों 1ः6-11द्ध
इस पुस्तक का उद्देश्य
    30    यीशु ने और भी बहुत से चिन्ह चेलों के सामने दिखाए, जो इस पुस्तक में लिखे नहीं गए, 31 परन्तु ये इसलिये लिखे गए हैं कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्रा मसीह है, और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।
जीवन और मृत्यु
और विश्वास बिना उसे प्रसÂ करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आनेवाले को विश्वास करना चाहिए कि वह है, और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है। ;इब्रानियों 11ः6द्ध यदि तू अपने मुँह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे, और अपने मन से विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उ(ार पाएगा। 10 क्योंकि धर्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उ(ार के लिये मुँह से अंगीकार किया जाता है। 11 क्योंकि पवित्राशास्त्रा यह कहता है, ‘‘ जो उस पर विश्वास करेगा वह लज्जित न होगा।’’13 क्योंकि, ‘‘जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उ(ार पाएगा।’’17 अतः विश्वास सुनने से और सुनना मसीह के वचन से होता है। ;रोमियों 10ः9-11,13,17द्ध पवित्राशास्त्रा के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया, 4 और गाड़ा गया, और पवित्राशास्त्रा के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा ;1 कुरिन्थियों 15ः3-4द्ध प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उ(ार पाएगा।’’;प्रेरितों 16ः31द्ध किसी ध्र्मी जन के लिये कोई मरे, यह तो दुर्लभ है, परन्तु हो सकता है किसी भले मनुष्य के लिये कोई मरने का भी साहस करे। 8 परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। ;रोमियो 5ः7-8द्ध    ‘‘ क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्रा यीशु मसीह दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।;यूहÂा 3ः16द्ध प्रेम इस में नहीं कि हम ने परमेश्वर से प्रेम किया, पर इस में है कि उसने हम से प्रेम किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिये अपने पुत्रा को भेजा। 19 हम इसलिये प्रेम करते हैं कि पहले उसने हम से प्रेम किया। ;1 यूहÂा 4ः10,19द्ध निःसन्देह पृथ्वी पर कोई ऐसा ध्र्मी मनुष्य नहीं जो भलाई ही करे और जिस से पाप न हुआ हो। ;सभोपदेशक 7ः20द्ध इसलिये कि सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित है अर्थात अलग है ;रोमियो 3ः23द्ध इसलिये वे सब प्रकार के अध्र्म, और दुष्टता, और लोभ, और बैरभाव से भर गए, और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईष्र्या से भरपूर हो गए, और चुगलखोर, 30 बदनाम करनेवाले, परमेश्वर से घृणा करने वाले, दूसरों का अनादर करनेवाले, अभिमानी, डींगमार, बुरी -बुरी बातों के बनानेवाले माता-पिता की आज्ञा न मानने वाले, 31 निर्बु(ि, विश्वासघाती, मयारहित और निर्दय हो गए।;रोमियों 1ः29-31द्ध हाय, यह जाति पाप से कैसी भरी है! यह समाज अध्र्म से कैसा लदा हुआ है! इस वंश के लोग कैसे कुकर्मी हैं, ये बाल-बच्चे कैसे बिगड़े हुए हैं। 5 तुम बलवा कर करके क्यों अध्कि मार खाना चाहते हो।;यशायाह 1ः4-5द्ध धेखा न खाना, ‘‘बुरी संगति अच्छे चरित्रा को बिगाड़ देती है।’’ 34 ध्र्म के लिये जाग उठो और पाप न करो, क्योंकि कुछ ऐसे हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते। ;1 कुरिन्थियों 15ः33-34द्ध क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।;रोमियों 6ः23द्ध और जैसे मनुष्यों के लिये एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है, ;इब्रानियों 9ः27द्ध और सब जातियाँ उसके सामने इक्ट्ठा की जाएँगी, और जैसे चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसे ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। 33 वह भेड़ों को अपनी दाहिनी ओर और बकरियों को बाई ओर खड़ा करेगा। 34 तब राजा अपनी दाहिनी ओर वालों से कहेगा, ‘हे मेरे पिता के ध्न्य लोगो, आओ, उस राज्य के अध्किारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया गया है। 41 ‘‘तब वह बाई ओर वालों से कहेगा, ‘हे शापित लोगो, मेरे सामने से उस अनन्त आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है। ;मत्ति 25ः32-34,41द्ध मत्यु और अधेलोक आग की झील में डाले गए। यह आग की झील दूसरी मृत्यु है 15 और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला, वह आग की झील में डाला गया। ;प्रकाशितवाक्य 20ः14-15द्ध उनकी पीड़ा का ध्ुआँ युगानुयुग उठता रहेंगा ;प्रकाशित 14ः11द्ध इसलिये हम में से हर एक परमेश्वर को अपना अपना लेखा देगा। ;रोमियों 14ः12द्ध धेखा न खाओ, परमेश्वर ठट्टों में नहीं उडाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है वही काटेगा। ;गलातियो 6ः7द्ध ‘‘ ध्न्य हैं वे जिनके अध्र्म क्षमा हुए, और जिनके पाप ढाँपे गए। 8 ध्न्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।’’ ;रोमियों 4ः7-8द्ध ‘‘मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले तो तुम पवित्रा आत्मा का दान पाओगे। 39 क्योंकि यह प्रतिज्ञा तुम, और तुम्हारी सन्तानों, और उन सब दूर-दूर के लोगों के लिये भी है जिनको प्रभु हमारा परमेश्वर अपने पास बुलाएगा।’’ ;प्रेरितो 2ः38-39द्ध यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमंे सब अध्र्म से शु( करने में विश्वासयोग्य और ध्र्मी है। ;1 यूहÂा 1ः9द्ध जो ध्र्म से चलता और सीध्ी बातें बोलता, जो अन्ध्ेर के लाभ से घृणा करता, जो घूस नहीं लेता, जो ख्ूान की बात सुनने से कान बन्द करता, और बुराई देखने से आँख मूँद लेता है। वही ऊँचे स्थानों में निवास करेगा अर्थात् स्वर्ग में। ;यशायाह 33ः15द्ध और ध्र्म का फल शान्ति और उसका परिणाम सदा का चैन और निश्चित रहना होगा।;यशायाह 32ः17द्ध ‘‘मैं वही हूँ जो अपने नाम के निमित्त तेरे अपराधें को मिटा देता हूँ और तेरे पापों को स्मरण न करूँगा। ;यीशुद्ध ;यशायाह 43ः25द्ध कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूँ, और जो लोग उसमें बसेंगे, उनका अध्र्म क्षमा किया जाएगा।;यशायाह 32ः24द्ध अपने को धेकर पवित्रा करो, मेरी आँखों के सामने से अपने बुरे कामों को दूर करो, भविष्य में बुराई करना छोड़ दो, 18 यहोवा परमेश्वर कहता है, ‘‘ तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों, तौभी वे हिम के समान उजले हो जाएँगे, और चाहे अर्गवानी रंग के हों, तौभी वे ऊन के समान श्वेत हो जाएँगे।19 यदि तुम आज्ञाकारी होकर मेरी मानो, ;यशायाह 1ः16,18-19द्ध जो कोई यह मान लेता है कि यीशु परमेश्वर का पुत्रा है, परमेश्वर उसमें बना रहता है, और वह परमेश्वर में । ;1 यूहÂा 4ः15द्ध यह बात सच और हर प्रकार से मानने के योग्य है कि मसीह यीशु पापियों का उ(ार करने के लिये जगत में आया। ;1 तीमुथियुस 1ः15द्ध और वही हमारे पापों का प्रायश्चित है, और केवल हमारे ही नहीं वरन् सारे जगत के पापों का भी । ;1 यूहÂा 2ः2द्ध वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिये हुए क्रूस पर चढ़ गया, जिससे हम पापों के लिये मरकर धर्मिकता के लिये जीवन बिताएँ, उसी के मार खाने से हम चंगे हुए। ;1 पतरस 2ः24द्ध क्या तुम नहीं जानते कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो, और परमेश्वर का आत्मा तुम में वास करता है? 17 यदि कोई परमेश्वर के मन्दिर को नष्ट करेगा तो परमेश्वर उसे नष्ट करेगा, क्योंकि परमेश्वर का मन्दिर पवित्रा है, और वह तुम हो। ;1 कुरिन्थियों 3ः16-17द्ध ध्र्मियों से कहो कि उनका भला होगा, क्योंकि वे अपने कामों का फल प्राप्त करेंगे। 11 दुष्ट पर हाय! उसका बुरा होगा, क्योंकि उसके कामों का फल उसको मिलेगा। ;यशायाह 3ः10-11द्ध जो अपने अपराध् छिपा रखता है, उसका कार्य सफल नहीं होता, परन्तु जो उनको मान लेता और छोड़ भी देता है, उस पर दया की जायेगी। 14 जो मनुष्य निरन्तर प्रभु का भय मानता रहता है वह ध्न्य है, परन्तु जो अपना मन कठोर कर लेता है वह विपत्ति में पड़ता है। ;नीतिवचन 28ः13-14द्ध मैं दृढ़ता के साथ कहता हूँ, बुरा मनुष्य निर्दोष न ठहरेगा, परन्तु ध्र्मी का वंश बचाया जाएगा। ;नीतिवचन 11ः21द्ध प्रभु में सदा आनन्दित रहो, मैं फिर कहता हूँ, आनन्दित रहो। 5 तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट  हो। प्रभु निकट है। 6 किसी भी बात की चिन्ता मत करो, परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा ध्न्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। 7 तब परमेश्वर की शान्ति, जो सारी समझ से परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी। ;फिलिप्पियों 4ः4-7द्ध प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह और परमेश्वर का प्रेम और पवित्रा आत्मा की सहभागिता तुम सबके साथ होती रहे। ;2 कुरिन्थयों 13ः14द्ध
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यीशु मसीह आज भी जीवित है
आप सब को प्रभु यीशु के नाम में जय मसीह की इस पुस्तक में परमेश्वर के पुत्रा मसीह का सुसमाचार और प्रेम के बारे में बताया गया है! प्रभु यीशु ने अन्धे को आँखे दी लगड़ो को चलाया, मुर्दो को जिंदा किया। पापो की क्षमा आदि आज भी प्रभु यीशु ये काम कर रहे है, इससे भी मनोहर और खुशी की बात ये है, कि प्रभु यीशु पुरी मनुष्य जाति के लिए इस संसार में मसीहा बनकर आये, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नाश न हो परन्तु अनन्त जीवन पाऐ। इस पुस्तक को पढ़े जाने पर प्रभु यीशु आप सबको आशीष दे। - सबको जय मसीह 


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